सांझ की वेला में
टिम-टिम करते
दीयों सी
सलमें-सितारों वाली
सलमें-सितारों वाली
धानी चुनर ओढ़े
भाल पर
भाल पर
चाँद सा टीका सजा
और अलकें बिखराए
घनी घटाओं का
घनी घटाओं का
नयनों में काजल
जूड़े में मोगरे की
लटकन लटकाए
जूड़े में मोगरे की
लटकन लटकाए
भ्रमित हुई सी
कौन दिशा से आई हो?
कल देखा था
कौन दिशा से आई हो?
कल देखा था
तुझे जलधि तट पर
आज मिली हो
आज मिली हो
निर्जन वन में
शावक छोने सी
शावक छोने सी
चंचल हिरणी सी
इस लोक की
इस लोक की
हो सुन्दरी
या देव लोक से आई हो
XXXXX
वाह !बहुत सुन्दर सखी
जवाब देंहटाएंसादर
स्नेहिल आभार सखी ।
हटाएंबहुत खूब। बहुत सुंदर। बधाई। सादर।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक धन्यवाद विरेन्द्र जी ।
हटाएंवाहह्हह.. सुंदर चित्रण...👍👍👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार श्वेता जी ।
हटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर शब्दों से सुसज्जित भावपूर्ण रचना
हृदयतल से आभार रविंद्र जी ।
हटाएंनयनों में काजल
जवाब देंहटाएंजूड़े में मोगरे की
लटकन लटकाए
इठलाई सी
खूबसूरत व मीठे अहसास देती पंक्तियाँ... बेहतरीन
हौसला अफजाई के लिए हृदयतल से आभार संजय जी ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (7 -04-2019) को " माता के नवरात्र " (चर्चा अंक-3298) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
अनीता सैनी
चर्चा अंक-3298 के "माता के नवरात्र" के निमन्त्रण के लिए हार्दिक आभार अनीता जी । आपको नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार लोकेश नदीश जी ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति । एक चित्र अंकित कर गई आँखों में । साधुवाद आदरणीय मीना जी।
जवाब देंहटाएंअनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आपका ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार ।
हटाएंवाह! बहुत ही सुन्दर शब्दों में
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर वर्णन...
लाजवाब.....
हृदयतल से हार्दिक आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए । ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
८ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सोमवारीय विशेषांक में मेरी रचना को साझा करने के लिए तहेदिल से आभार श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार कामिनी जी , सस्नेह.
जवाब देंहटाएंकौन हो तुम ...
जवाब देंहटाएंमन के भाव ही मूर्त हो उठते हैं और रचना में उतर आते हैं ... यही कवी की कल्पना का सार है .... बहुत सुन्दर रचना ...
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से आभार नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस लोक की
जवाब देंहटाएंहो सुन्दरी
या देव लोक से आई हो?
क्या खूब प्रश्न पूछा है एक मृगनयनी से | असीम सौन्दर्य से भरी श्रृंगार से महकती गोरी को देख कौन हतप्रभ ना रह जाए और कविमन के तो क्या कहने !!! उसे तो बहाना चाहिए नटखट नवबालाओं से संवाद का !! भावस्पर्शी रचना के लिए शुभकामनायें प्रिय मीनाजी |
बहुत समय के बाद आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मन हर्ष से अभिभूत है, आपके अनमोल वचनों से रचना को सार्थकता
जवाब देंहटाएंमिली । स्नेहिल आभार रेणु जी ।
बहुत खूब , प्रभावशाली रचना !
जवाब देंहटाएंआपकी सराहनीय अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद सतीश जी ।
हटाएंबेहतरीन रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार अभिलाषा जी ।
हटाएंइस लोक की हो सुन्दरी
जवाब देंहटाएंया देवलोक से आयी हो
बही ही मनभावन सा शब्दचित्रण...
वाह!!!
सस्नेह आभार सुधा जी ।
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