top hindi blogs

Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

"कौन हो तुम"

सांझ की वेला में
टिम-टिम करते
दीयों सी
सलमें-सितारों वाली
धानी चुनर ओढ़े
भाल पर
चाँद सा टीका सजा
और अलकें बिखराए
घनी घटाओं का
नयनों में काजल
जूड़े में मोगरे की
लटकन लटकाए
भ्रमित हुई सी
कौन दिशा से आई हो?
कल देखा था
तुझे जलधि तट पर
आज मिली हो
निर्जन वन में
शावक छोने सी
चंचल हिरणी सी
इस लोक की
हो सुन्दरी
या देव लोक से आई हो

XXXXX

35 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब। बहुत सुंदर। बधाई। सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से हार्दिक धन्यवाद विरेन्द्र जी ।

      हटाएं
  2. वाहह्हह.. सुंदर चित्रण...👍👍👌

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह...
    बहुत ही सुंदर शब्दों से सुसज्जित भावपूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. नयनों में काजल
    जूड़े में मोगरे की
    लटकन लटकाए
    इठलाई सी
    खूबसूरत व मीठे अहसास देती पंक्तियाँ... बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हौसला अफजाई के लिए हृदयतल से आभार संजय जी ।

      हटाएं
  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (7 -04-2019) को " माता के नवरात्र " (चर्चा अंक-3298) पर भी होगी।

    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा अंक-3298 के "माता के नवरात्र" के निमन्त्रण के लिए हार्दिक आभार अनीता जी । आपको नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।

      हटाएं
  6. सुन्दर प्रस्तुति । एक चित्र अंकित कर गई आँखों में । साधुवाद आदरणीय मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आपका ।

      हटाएं
  7. वाह! बहुत ही सुन्दर शब्दों में
    बहुत ही सुन्दर वर्णन...
    लाजवाब.....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से हार्दिक आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए । ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत ।

      हटाएं
  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ८ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. सोमवारीय विशेषांक में मेरी रचना को साझा करने के लिए तहेदिल से आभार श्वेता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  10. हृदयतल से आभार कामिनी जी , सस्नेह.

    जवाब देंहटाएं
  11. कौन हो तुम ...
    मन के भाव ही मूर्त हो उठते हैं और रचना में उतर आते हैं ... यही कवी की कल्पना का सार है .... बहुत सुन्दर रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  12. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से आभार नासवा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  14. इस लोक की
    हो सुन्दरी
    या देव लोक से आई हो?
    क्या खूब प्रश्न पूछा है एक मृगनयनी से | असीम सौन्दर्य से भरी श्रृंगार से महकती गोरी को देख कौन हतप्रभ ना रह जाए और कविमन के तो क्या कहने !!! उसे तो बहाना चाहिए नटखट नवबालाओं से संवाद का !! भावस्पर्शी रचना के लिए शुभकामनायें प्रिय मीनाजी |

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत समय के बाद आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मन हर्ष से अभिभूत है, आपके अनमोल वचनों से रचना को सार्थकता
    मिली । स्नेहिल आभार रेणु जी ।

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत खूब , प्रभावशाली रचना !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहनीय अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद सतीश जी ।

      हटाएं
  17. इस लोक की हो सुन्दरी
    या देवलोक से आयी हो
    बही ही मनभावन सा शब्दचित्रण...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"