जाने को है वसन्त
पक गए
सरसों के फूल
धरा ने पहने
वासन्ती वसन
वृक्षों के तन पर
शोभित सुवासित
नव कलिकाएं
मन्जुल मंजरियाँ
आमों के टिकोरे
मलयानिल झकोरे
पूर्वोत्तर क्षितिज पर
बिखरा सोना
कोयल की कूहुक
देती दस्तक
उजली भोर की ।
गर्मी की छुट्टियां
बच्चों की टोलियां
कूदती-फांदती
छुपती-छुपाती
कभी इस डाल
कभी उस डाल
तोड़ती अम्बियाँ
इमली की गुच्छियां
अमरूद , लीचियाँ
लूट का सामान
आपस में बांटती
रूठती मनाती
गाँवों की बागीचियाँ
घनी अमराईयाँ
भरी दोपहरी
मूक गवाह
चंचल बचपन की
xxxxx
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर
स्नेहिल आभार अनीता जी । सस्नेह ।
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/04/2019 की बुलेटिन, " टूथ ब्रश की रिटायरमेंट - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी मेरे सृजन को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए ।
हटाएंपूर्वोत्तर क्षितिज पर
जवाब देंहटाएंबिखरा सोना
कोयल की कूहुक
देती दस्तक
उजली भोर की ।
बहुत ही सुन्दर...
बहुत लाजवाब
वाह!!!
स्नेहिल आभार सुधा जी ।
हटाएंबहुत सुंदर बदलते मौसम का दिलकश राग...👌
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार श्वेता जी ! लिखा तो आपके 'हमकदम' के लिए था बस डेट मिस हो गई । अच्छा लगा आपकी प्रतिक्रिया देख कर :-)
हटाएंगाँवों की बागीचियाँ
जवाब देंहटाएंघनी अमराईयाँ
भरी दोपहरी
मूक गवाह
चंचल बचपन की
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वाह क्या बात है। आपको बधाई।
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार विरेन्द्र जी।
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंबहुत ही प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल नर्सरी राइम का मज़ा आ गया!!
"मंथन" पर आपका स्वागत सलिल जी 🙏🙏 आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ।
हटाएंभोर का आगमन कोयल के साथ ही होता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बंध हैं ...
भाव स्पष्ट हैं ... कहन लाजवाब है ...
आपकी हौसला अफजाई सदैव रचनात्मकता को सार्थकता देती है बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
हटाएंसबके दरवाज़े,खिडकियों पर दस्तकें देती है....गर्मी की छुट्टियाँ
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया सदैव रचनात्मकता को सार्थकता और उत्साहवर्धन करती है संजय जी । तहेदिल से आभार ।
हटाएंवाह बहुत सुन्दर मीना जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुनहरी यादों को संजोए सरस सुहानी रचना उत्तम काव्य सुंदर शब्दों का संयोजन।
आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया से लेखनी सफल हुई कुसुम जी । स्नेहिल आभार ।
हटाएंगाँवों की बागीचियाँ
जवाब देंहटाएंघनी अमराईयाँ
भरी दोपहरी
मूक गवाह
चंचल बचपन की
सच में मौसम बदलते हैं तो कई तरह के बदलाव जीवन में भी होते हैं। उछल कूद बच्चों में बढ़ जाती है।
बहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंमीना दी, बदलते मौसम का बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं आपने।
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार ज्योति जी ।
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