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बुधवार, 13 मार्च 2019

"मरीचिका'

मृग मरीचिका मन की
चिन्ह अपने छोड़ती
चल रही सैकत किनारे
क्षितिज छोर खोजती

स्व की खोज में
स्वयं में भ्रमित है
मोह माया जाल में
उलझ मन व्यथित है

बादलों में बूँद सी
आत्मा संसार में
पुष्प में सुगन्ध सी
व्याप्त है ब्रम्हाण्ड में

लहर सी समुद्र की
आवेश में आ दौड़ती
आबद्ध मोहपाश में
वापस वही पे लौटती
  ✍️✍️   
      

34 टिप्‍पणियां:

  1. गहरी आध्यात्मिक रचना।
    अप्रतिम सुंदर ।

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    1. सस्नेह आभार कुसुम जी ! आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।

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  2. मृग मरीचिका मन की
    स्व की खोज में
    स्वयं में भ्रमित है
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर... लाजवाब...

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    उत्तर
    1. स्नेहिल आभार सुधा जी ! आपकी प्रतिक्रिया सदैव मनोबल बढ़ाती है ।

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  3. बादलों में बूँद सी
    पुष्प में सुगंध सी

    भावभीनी अभिव्यक्ति

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    1. हृदयतल से आभार नुपूरम जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए एवं ब्लॉग पर हृदय से स्वागत आपका ।

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  4. मृग मरीचिका मन की
    चिन्ह अपने छोड़ती
    चल रही सैकत किनारे
    क्षितिज छोर खोजती
    बहुत खूब......अनूठी रचना !

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    1. तहेदिल से आभार रविन्द्र जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए ।

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  5. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 14 मार्च 2019 को प्रकाशनार्थ 1336 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    उत्तर
    1. रविंद्र जी "पाँच लिंकों का आनंद" में मेरी रचना को मान देने के लिए हृदयतल से सादर आभार ।

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  6. मन के भटकाव और उसके मंज़िल तक पहुंचने के सफर को बखूबी दर्शाती कृति।

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    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए अति आभार विकास जी ।

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  7. बेहद सारगर्भित.... सराहनीय सृजन मीना जी...बहुत सुंदर जीवन दर्शन है👍👍👌👌👌

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    1. आपकी मन भावन प्रतिक्रिया से मन आह्लादित हुआ श्वेता जी ! ढेर सा स्नेह ! आभार ।

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  8. बादलों में बूँद सी
    आत्मा संसार में
    पुष्प में सुगन्ध सी
    व्याप्त है ब्रम्हाण्ड में

    बहुत ही सुंदर..... अधयत्मिक रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल अनमोल प्रतिक्रिया सदैव उत्साहित करती है तहेदिल से शुक्रिया कामिनी जी ।धः

      हटाएं
  9. स्व की खोज में
    स्वयं में भ्रमित है
    मोह माया जाल में
    उलझ मन व्यथित है...बहुत ख़ूब सखी

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    उत्तर
    1. स्नेहमयी उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सखी !

      हटाएं
  10. मन की उलझन का आध्यात्मिक आख्यान।

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    उत्तर
    1. सारगर्भित अनमोल वचनों के लिए अत्यंत आभार विश्वमोहन जी ।

      हटाएं
  11. स्व की खोज में
    स्वयं में भ्रमित है
    मोह माया जाल में
    उलझ मन व्यथित बहुत सुंदर रचना

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  12. लहर सी समुद्र की
    आवेश में आ दौड़ती
    आबद्ध मोहपाश मे
    वापस वही पे लौटती


    बहुत बढि़या,सुंदर और सार्थक कविता के लिए बधाई। मन की मृगमरीचिका की के अच्छे समझाया है आपने। गागर में सागर जैसी कविता। सादर।

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  13. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार विरेन्द्र जी ।

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  14. बहुत सुन्दर आध्यात्मिक रचना मीनाजी !
    भ्रम, माया के मोह-जाल में, बद्ध, न, यह मन, खिल पाएगा,
    जिस दिन ख़ुद को पा लेगा यह, परम-ब्रह्म भी मिल जाएगा.



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  15. इतनी सुन्दर पद्यात्मक और प्रेरणादायक पंक्तियों में आपकी प्रतिक्रिया से मेरी रचना सार्थक और मन हर्ष से अभिभूत हुआ । बहुत बहुत आभार आपका इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए ।

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  16. मोह माया जाल में
    इन्ही उलझनों में से कुछ पल जीवन के ऐसे होते हैं जो जीवन को मायने देते हैं ......इस बार भी बढ़िया रचना मीना जी

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  17. आपकी प्रतिक्रिया सदैव रचनात्मकता सार्थकता और मन को अभिभूत करती है संजय जी । तहेदिल से आभार ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"