मृग मरीचिका मन की
चिन्ह अपने छोड़ती
चल रही सैकत किनारे
क्षितिज छोर खोजती
स्व की खोज में
स्वयं में भ्रमित है
मोह माया जाल में
उलझ मन व्यथित है
बादलों में बूँद सी
आत्मा संसार में
पुष्प में सुगन्ध सी
व्याप्त है ब्रम्हाण्ड में
लहर सी समुद्र की
आवेश में आ दौड़ती
आबद्ध मोहपाश में
वापस वही पे लौटती
✍️✍️
गहरी आध्यात्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सुंदर ।
सस्नेह आभार कुसुम जी ! आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
हटाएंमृग मरीचिका मन की
जवाब देंहटाएंस्व की खोज में
स्वयं में भ्रमित है
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर... लाजवाब...
स्नेहिल आभार सुधा जी ! आपकी प्रतिक्रिया सदैव मनोबल बढ़ाती है ।
हटाएंबादलों में बूँद सी
जवाब देंहटाएंपुष्प में सुगंध सी
भावभीनी अभिव्यक्ति
हृदयतल से आभार नुपूरम जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए एवं ब्लॉग पर हृदय से स्वागत आपका ।
हटाएंमृग मरीचिका मन की
जवाब देंहटाएंचिन्ह अपने छोड़ती
चल रही सैकत किनारे
क्षितिज छोर खोजती
बहुत खूब......अनूठी रचना !
तहेदिल से आभार रविन्द्र जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए ।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 14 मार्च 2019 को प्रकाशनार्थ 1336 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
रविंद्र जी "पाँच लिंकों का आनंद" में मेरी रचना को मान देने के लिए हृदयतल से सादर आभार ।
हटाएंमन के भटकाव और उसके मंज़िल तक पहुंचने के सफर को बखूबी दर्शाती कृति।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए अति आभार विकास जी ।
हटाएंबेहद सारगर्भित.... सराहनीय सृजन मीना जी...बहुत सुंदर जीवन दर्शन है👍👍👌👌👌
जवाब देंहटाएंआपकी मन भावन प्रतिक्रिया से मन आह्लादित हुआ श्वेता जी ! ढेर सा स्नेह ! आभार ।
हटाएंबादलों में बूँद सी
जवाब देंहटाएंआत्मा संसार में
पुष्प में सुगन्ध सी
व्याप्त है ब्रम्हाण्ड में
बहुत ही सुंदर..... अधयत्मिक रचना
आपकी स्नेहिल अनमोल प्रतिक्रिया सदैव उत्साहित करती है तहेदिल से शुक्रिया कामिनी जी ।धः
हटाएंस्व की खोज में
जवाब देंहटाएंस्वयं में भ्रमित है
मोह माया जाल में
उलझ मन व्यथित है...बहुत ख़ूब सखी
स्नेहमयी उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सखी !
हटाएंमन की उलझन का आध्यात्मिक आख्यान।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित अनमोल वचनों के लिए अत्यंत आभार विश्वमोहन जी ।
हटाएंस्व की खोज में
जवाब देंहटाएंस्वयं में भ्रमित है
मोह माया जाल में
उलझ मन व्यथित बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सुशील जी 🙏🙏
हटाएंलहर सी समुद्र की
जवाब देंहटाएंआवेश में आ दौड़ती
आबद्ध मोहपाश मे
वापस वही पे लौटती
बहुत बढि़या,सुंदर और सार्थक कविता के लिए बधाई। मन की मृगमरीचिका की के अच्छे समझाया है आपने। गागर में सागर जैसी कविता। सादर।
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार विरेन्द्र जी ।
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आध्यात्मिक रचना मीनाजी !
भ्रम, माया के मोह-जाल में, बद्ध, न, यह मन, खिल पाएगा,
जिस दिन ख़ुद को पा लेगा यह, परम-ब्रह्म भी मिल जाएगा.
इतनी सुन्दर पद्यात्मक और प्रेरणादायक पंक्तियों में आपकी प्रतिक्रिया से मेरी रचना सार्थक और मन हर्ष से अभिभूत हुआ । बहुत बहुत आभार आपका इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए ।
जवाब देंहटाएंमोह माया जाल में
जवाब देंहटाएंइन्ही उलझनों में से कुछ पल जीवन के ऐसे होते हैं जो जीवन को मायने देते हैं ......इस बार भी बढ़िया रचना मीना जी
आपकी प्रतिक्रिया सदैव रचनात्मकता सार्थकता और मन को अभिभूत करती है संजय जी । तहेदिल से आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंतहेदिल से आभार आपका 🙏🙏
हटाएंवाह ! बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंहृदयी आभार अनीता जी ।
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