रात कब की हो गई ।
थक गई वह सो गई ।।
जागती रहती सदा ।
थकन हावी हो गई ।।
चन्द्रमा की चाँदनी ।
ओढ़नी सी हो गई ।।
छोड़ बाबुल आंगना ।
भूल अपने को गई ।।
नेह का सागर बनी ।
आप खारी हो गई ।।
ओस की सी बूँद वह ।
धूप में आ खो गई ।।
भागती रहती सदा ।
सांस सब की हो गई।।
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बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसच में ओरत का जीवन चक्री की तरह घूमता रहता है ...
बहुत ही सहज पल उठा कर इस छोटी बहर में बाँधा है ओरत के जीवन को ...
इस गजल पर आपकी प्रतिक्रिया...., सफल हो गया लिखना । बहुत बहुत आभार नासवा जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व कैंसर दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन में मेरी रचना को मान देने के लिए तहेदिल से आभार हर्षवर्धन जी ।
हटाएंवाहः
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
हृदयतल से आभार लोकेश नदीश जी ।
हटाएंनारी शक्ति को प्रणाम। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंiwillrocknow.com
सादर नमस्कार नीतीश जी ! स्वागत आपका "मंथन" पर ।
हटाएंआपके निमन्त्रण का शुक्रिया तहेदिल से ।
बहुत सुन्दर सखी
जवाब देंहटाएंलाजबाब सृजन नारी जीवन का
सादर
सहृदय आभार प्रिय अनीता हौसलाअफजाई के लिए ।
हटाएंरिश्तों में ही समाई है उसकी जान
जवाब देंहटाएंकहते हैं लोग औरत है महान...
नारी’। इस शब्द में इतनी ऊर्जा है, कि इसका उच्चारण ही मन-मस्तक को झंकृत कर देता है... औरत का जीवन त्याग भरा होता है बेहद मर्मस्पर्शी और सराहनीय प्रस्तुति
आपकी सारगर्भित एवं सराहनीय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली । बहुत बहुत आभार संजय जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/02/108.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"मित्र मंडली" के संकलन मेंं मेरी रचना को मान देने के लिए हृदयतल से आभार राकेश जी ।
हटाएंनेह का सागर बनी ।आप खारी हो गई ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.... मीना जी
हार्दिक आभार कामिनी जी !
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