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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

"हद"

कहने की भी हद होती है ।
सहने की भी हद होती है ।।


चुभती हैं सब शूल सरीखी ।
तुम से बातें जब होती हैं ।।


अपनी पर कोई आए तो ।
चुप की सीमा कब होती है ।।


कम ही तो ऐसा होता है ।
मन की बातें अब होती है ।।


जब भी खुलती मन की गठरी ।
कड़वाहट ही तब होती है ।।

                 XXXXX

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज उदासी भरे भाव हैं आपकी रचना में....बहुत सच लिखा आपने अंतर्मन की वेदना का चित्रण किया है ये तो अक्सर होता ही आया है जब मन की गठरी खुलती है तो कड़वाहट ही जन्म लेती है ......पर अक्सर ये कड़वाहट मन को भिगो जाती है मीना जी

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    1. मुस्कुराहटें और उदासियाँ...., अभिन्न हैं जीवन में , बस लिख ही डाली । आपकी प्रतिक्रिया के बाद फिर से पढ़ी रचना तो लगा सचमुच हद हो गई ये तो :) । बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी तहेदिल से आपकी प्रतिक्रिया सदैव संबल प्रदान करती हैं ।

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  2. हद वो भी कहने सुनने रहने सहने की....
    बहुत ही सुन्दर सटीक प्रस्तुति...
    वाह!!!

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  3. आपकी सराहना से अभिभूत हूँ सुधा जी !! बेहद शुक्रिया हृदयतल से ...., आभार आपके स्नेहयुक्त वचनों के लिए। सादर।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"