अलग अलग मूड से लिखे सेदोका , भावाभिव्यक्ति में विविधता लिए …., इसलिए शीर्षक “विविधा” उचित लगा ।
क्षितिज पार
छिटकी अरुणिमा
जीव जगत जागा
अभिनन्दन
कलरव ध्वनि से
भोर की उजास में
मौन का स्पर्श
स्नेहसिक्त सम्बल
गढ़ता पहचान
निज नेह की
खामोशी की जुबान
अक्सर बोलती है
मिटती नही
वैचारिक दूरियाँ
कैसी मजबूरियाँ
देती हैं क्लेश
कि खत्म नही होते
आपसी मनभेद
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