(1)
भला-बुरा सब भूल कर ,आगे की सोचते हैं ।
कुछ अपनी कहते हैं , कुछ औरों की सुनते हैं ।।
खुद को खुश रखने का ,कोई अवसर ढूंढते हैं ।
सबकी उम्मीदें हों पूरी , यही ख्वाब देखते हैं ।।
( 2 )
क्यों भागते हो हर दम थोड़ा रुक जाओ ।
दो पल निकाल अपनों संग वक्त बिताओ ।।
बात फख़त इतनी सी है कि हम भी हैं तुम्हारे ।
करते हैं मनुहार..., रूको ! मान भी जाओ
(3)
सुकून की तलाश में फिरता आदमी ।
प्यासे हिरन सा भटकता आदमी ।।
मरू लहरों में फंस नहीं मिलता सुख ।
खुद से यह नहीं समझता आदमी ।।
( 4 )
यादों के दरीचे खुल से गए ।
जज्बात यूं ही बिखर से गए ।।
खुद को संभालना था मुश्किल ।
बूँद बन सागर में सिमट से गए ।।
XXXXX
बहुत सुन्दर मुक्तक सखी
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी ! !सस्नेह ...,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मुक्तक
जवाब देंहटाएंबधाई
हार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 20 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द में" मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंक्यों भागते हो हर दम थोड़ा रुक जाओ ।
जवाब देंहटाएंदो पल निकाल अपनों संग वक्त बिताओ ।
सहमत आपकी बात से.... सहज शब्दों में सराहनीय मुक्तक है मीना जी
होता यही है संजय जी.., जीवन में भाग दौड़ इतनी है कि ना तो खुद के लिए और ना ही अपनों के लिए वक्त होता है और जब होता है तो सब आगे बढ़ जाते हैं । आपकी अनमोल प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती हैं ।आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनुराधा जी ।
हटाएंबेहतरीन मुक्तक
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अभिलाषा जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर मीना जी ! 'यादों के दरीचे खुलते रहे' ये दरीचे खुलने भी चाहिए वरना इंसान का दम घुट जाएगा.अब चाहे यादों के इन दरीचों से दर्द बढ़ाने वाली हवाएं आएं या खुशनुमा हवाएं, ज़ख्म ताज़ा हों या भर जाएं लेकिन जो ये हवाएं न आएं तो हम पत्थर हो जाएं, जीते जी मर जाएं.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ! चिन्तन के लिए अतीत और वर्तमान की परख के लिए विवेक खुला होना चाहिए । बहुत बहुत आभार आपका इतनी अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए ।
हटाएंवाह्ह्ह... बहुत सुंंदर मुक्तक मीना जी...भाव और विचार सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर मुक्तक
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ओंकार जी ।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सुशील जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंस्वागत आपका शर्मा जी ब्लॉग पर । उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।
हटाएंखुद को संभालना था मुश्किल ।
जवाब देंहटाएंबूँद बन सागर में सिमट से गए ।।
ये दुनियां दुखों का सागर ही तो है.. हर कोई किसी न किसी बात से दुखी है..अत अपना दुःख तो इस सागर में एक बूंद के बराबर ही है.
बहुत खूब.
पधारिये- ठीक हो न जाएँ
सारगर्भित उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार रोहित जी ।
हटाएंसुकून की तलाश में फिरता है आदमी ।
जवाब देंहटाएंदिल के चैन के लिए ये है भी लाजमी ।।
सुन्दर मुक्तक।
बहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंबहुत ही लाजवाब मुक्तक.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है सुधा जी. हृदयतल से आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर मुक्तक, मीना दी।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार ज्योति जी ।
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