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शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

"हम सब"

सब के सब एक साथ
रह लें मिल कर
भला.., ऐसा कब होता है ।
आदमी की आदत भी
पंछियों सरीखी है ।
पंख मिले नही कि
निकल पड़े नीड़ से
खुद की तलाश में…,
कभी असीम अनन्त गगन
तो कभी सुदूर क्षितिज ।
अपनों का अभाव
तीर सा सालता है ।
ऐसा भी नही कि सब से
मिल कर चलना नही चाहते ।
मगर क्या करें …,
सब का अपना अपना अहम है
और अपना अपना
अकेलेपन का दंश ।
आदमी खुद
उतना बड़ा नही
जितनी बड़ी उसकी ‘मैं’ ।
ये ‘मैं ‘आदमी को
सब के साथ
कहाँ आने देती है ।
सर्वेसर्वा बनने की चाह
अपनों से दूर कर
सद्गुणों को ही लीलती है ।
अगर आदमी की ‘मैं’ मिट कर
‘हम सब’ बन जाए तो
संभव है कि एक दिन
धरा पर स्वर्ग उतर आए ।
और उस दिन….,
वसुधैव कुटुम्बकम और
रामराज्य की संकल्पना ।
पहले घर-आंगन फिर समाज
और उसके बाद सम्पूर्ण धरा पर
सदा के लिए साकार हो जाएँ ।

XXXXX



20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर संदेश देती अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. वसुधैव कुटुम्बकम और
    रामराज्य की संकल्पना
    सामयिक एवं सटीक रचना.....वो सुबह नयी और पुरानी ,दोनो पीढ़ियों के समन्वय से ही आयेगी !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धित करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ संजय जी ।

      हटाएं
  3. अगर आदमी की ‘मैं’ मिट कर,
    हम सब’ बन जाए तो संभव है कि एक दिन
    धरा पर स्वर्ग उतर आए ।
    काश !!!एकदिन ऐसा हो जाये सादर स्नेह.... मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको हौसलाअफजाई करती स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार कामिनी जी ....,सस्नेह आभार !

      हटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. "पाँच लिंकों का आनंद" के सोमवारीय विशेषांक में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. तील हम है,
    और गुड़ हो आप,
    मिठाई हम है,
    और मिठास हो आप,
    इस साल के पहले त्योंहार से
    हो रही आज शुरुआत…
    आपको हमारी ओर से परिवार सहित
    मकर संक्रांति की शुभकामनाये !!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी !! आपको भी सपरिवार मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर मीना जी मानव और उसके अहम का सुंदर चित्रण और उसका समाज पर पडता प्रभाव आपने बहुत सार्थकता से रचना में दर्शाया सच है अगर अहम मिट जाये तो ही वासुदेव कुटुम्बकम की भावना संभव है ।
    अप्रतिम भाव रचना।

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    उत्तर
    1. आपकी हौसलाअफजाई करती सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिलती है कुसुम जी ! सस्नेह आभार ।

      हटाएं
  9. मगर क्या करें …,
    सब का अपना अपना अहम है
    और अपना अपना
    अकेलेपन का दंश ।
    आदमी खुद
    उतना बड़ा नही
    जितनी बड़ी उसकी ‘मैं’ ।

    हर पंक्ति भावपूर्ण है।
    प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका ! आपका अपनत्व सम्पन्न प्रणाम सुखद लगा । हार्दिक मंगलकामनाएं आपके सुखद और उज्जवल भविष्य के लिए ।

      हटाएं
  10. बहुत हीं सुन्दर भाव.... शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत आपका पल्लवी जी "मंथन" पर ! आपकी सुन्दर सी शुभ कामना पूरित प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से धन्यवाद।

      हटाएं
  11. अगर आदमी की ‘मैं’ मिट कर
    ‘हम सब’ बन जाए तो
    संभव है कि एक दिन
    धरा पर स्वर्ग उतर आए ।
    वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर भाव.... लाजवाब ...।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधा जी आभारी हूँ आपकी हौसला अफजाई से ..., आपका स्नेह यूं ही बना रहे । बहुत बहुत धन्यवाद ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"