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मंगलवार, 29 जनवरी 2019

"विश्वास"

अक्सर कुछ अनसुलझे
प्रश्न मन के दरिया में
कभी रोष तो कभी
असन्तोष का व्यूह बन
भंवर से घुमड़ते हैं ।
उस वक्त लगता है …,
अब की बार बह निकलेंगे
अल्फाज़ों में बिखर
लावा या सुनामी से… ,
मगर ये जो पुल है ना जिसका
ईंट-गारा और पत्थर….,
नेह की बुनियाद है ।
अटल खड़ा है हिमालय सा
रोक लेता है हर आवेग को ।
गहरी खामोशी के बाद …,
मन के किसी कोने से
एक आवाज उभरती है….,
ये हिमालय यूं ही खड़ा रहे ।
अडिग…,अटल ….., निश्चल…,
इस कायनात से उस कायनात तक ।।
XXXXX

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

“कैसे कह दूँ”

बीते लम्हों के हर पल से,
यादों के जुड़े हैं तार..,कैसे कह दूँ ?
कुछ याद नही…..,

रेशम से उलझे रिश्तों में,
गाँठ लगी कई बार..,कैसे कह दूँ ?
कुछ याद नही……,

घर-आंगन सी जुड़ी अल्हड़ यादें,
बातें  हैं बेशुमार..,कैसे कह दूँ ?
कुछ याद नही…..,

स्मृति की गठरी में बँधी बातें,
खुलती हैं कई बार…, कैसे कह दूँ ?
कुछ याद नहीं …….,


                       XXXXX

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

।। मुक्तक ।।

(1)

भला-बुरा सब भूल कर ,आगे की सोचते हैं ।
कुछ अपनी कहते हैं , कुछ औरों की सुनते हैं ।।
खुद को खुश रखने का ,कोई अवसर ढूंढते हैं ।
सबकी उम्मीदें हों पूरी , यही ख्वाब देखते हैं ।।


 ( 2 )                           

क्यों भागते हो हर दम थोड़ा रुक जाओ ।
 दो पल निकाल अपनों संग वक्त बिताओ ।।
बात फख़त इतनी सी है कि हम भी हैं तुम्हारे ।
करते हैं मनुहार..., रूको ! मान भी जाओ

(3)

सुकून की तलाश में फिरता आदमी ।
प्यासे हिरन सा भटकता आदमी ।।
मरू लहरों में फंस नहीं मिलता सुख ।
खुद से यह नहीं समझता आदमी ।।

( 4 )

यादों के दरीचे खुल से गए ।
 जज्बात यूं ही बिखर से गए ।।
खुद को संभालना था मुश्किल ।
बूँद बन सागर में सिमट से गए ।।



       XXXXX

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

“छुवन”(हाइकु)

शरद ऋतु
छुवन तुहिन की
सिहरन सी
वसन्तोत्सव
छुवन बयार की
लागे भली सी

ऋतु पावस
छुवन फुहार की
मुदित धरा

जननी तेरी
छुवन ममता की
पूर्णता मेरी


नेह के नाते
छुवन निजत्व की
मन को भाये


ओ मातृभूमि !
छुवन गौरव की
तुझ से आए

XXXXX

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

"हम सब"

सब के सब एक साथ
रह लें मिल कर
भला.., ऐसा कब होता है ।
आदमी की आदत भी
पंछियों सरीखी है ।
पंख मिले नही कि
निकल पड़े नीड़ से
खुद की तलाश में…,
कभी असीम अनन्त गगन
तो कभी सुदूर क्षितिज ।
अपनों का अभाव
तीर सा सालता है ।
ऐसा भी नही कि सब से
मिल कर चलना नही चाहते ।
मगर क्या करें …,
सब का अपना अपना अहम है
और अपना अपना
अकेलेपन का दंश ।
आदमी खुद
उतना बड़ा नही
जितनी बड़ी उसकी ‘मैं’ ।
ये ‘मैं ‘आदमी को
सब के साथ
कहाँ आने देती है ।
सर्वेसर्वा बनने की चाह
अपनों से दूर कर
सद्गुणों को ही लीलती है ।
अगर आदमी की ‘मैं’ मिट कर
‘हम सब’ बन जाए तो
संभव है कि एक दिन
धरा पर स्वर्ग उतर आए ।
और उस दिन….,
वसुधैव कुटुम्बकम और
रामराज्य की संकल्पना ।
पहले घर-आंगन फिर समाज
और उसके बाद सम्पूर्ण धरा पर
सदा के लिए साकार हो जाएँ ।

XXXXX



शनिवार, 5 जनवरी 2019

"आशियाना"


बेगाने घरों  में रह कर
मुझे कैसा लगता है ।
ख्वाबों में आकर अक्सर
मेरा हाल पूछता है ।
कहाँ रहती हूँ आजकल
मुझ से मेरा घर पूछता है ।

अपने  जो थे वो सब
तिनकों से बिखर गए ।
दुनिया के बाजार में
अजनबी ही बचे रह गए ।
उन सब के बीच फिर भी
अपनों सी बात करता  है ।

खुश हूँ ना मैं खुद से
मुस्कुरा के पूछता है ।
अपने दुख भूल कर
हाल मेरे पूछता है ।
मुझ से मेरा अपना घर
बस ख्वाबों में मिलता है ।

  XXXXX

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

“अभिलाषा”


अभिनन्दन
हर्षित जन गण
बीति बिसार
आगत का स्वागत
वर्ष नवल
समय अविरल
सत्य अटल
हो कर गतिमान
करें उर्जित
अपने मन प्राण
मंगलमय
लक्ष्य करें संधान
ओ वसुन्धरा!
ह़ो प्रसन्न वदन
दो वरदान
उपजे धन-धान्य
धरती पुत्र
श्रम से हो हर्षित
हो सबका कल्याण

XXXX

(नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँँ)