अपनी कुछ ना कहता है मन ।
खुद में डूबा रहता है मन ।।
खामोशी की मजबूरी क्या ?
मुझसे कुछ ना कहता है मन ।।
शोर मचाती इस दुनिया में ।
चुप्पी से सब सहता है मन ।।
इठलाती चंचल नदिया की ।
धारा बन कर बहता है मन ।।
समझाने से कुछ ना समझे ।
खुद की धुन में रहता है मन ।।
XXXXX
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर 👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ।
हटाएंमन, एक तिलिस्म रचता है। कौन जाने ये कहा करता और कहता है।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से शुक्रिया पुरुषोत्तम जी ।
हटाएंसुन्दर कृति।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विकास जी ।
हटाएंलाजवाब रचना...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
हटाएंसमझाने से कुछ ना समझे ।
जवाब देंहटाएंखुद की धुन में रहता है मन
........गजब कि पंक्तियाँ हैं !!
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया सदैव बेहतर सृजन हेतु प्रेरित करती है संजय जी ।
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