क्षणभंगुर
अपना ये जीवन
शून्य जगत
जीवन का पहिया
कोल्हू सा लागे
मानव बँध भागे
सूझे ना आगे
मुझसे मन पूछे
खुद का स्वत्व
मैं दृगों में अटका
अश्रु बिन्दु सा
बन के खारा जल
बिखर जाऊँ
कोमल गालों पर
या बन जाऊँ
किसी सीप का मोती
कर्मों का फल
तुझ पर निर्भर
स्वयं को प्रेरित कर
XXXXX
कर्मों का फल वो अपने हाथ में ही रखेगा ... दिल को सुकून पहुँचता है इस बात से भी ... ए ये भी सच है की ये जगत शून्य है ... स्वप्न जैसे ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना ...
रचना आपके मन तक पहुँची ....,लेखनी सफल हुई । बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
हटाएंबहुत अच्छी रचना 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी !
हटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीपशिखा जी ।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी !
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 20 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1252 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह जी. कल प्रातः इसके नए अंक की प्रतिक्षा रहेगी ।
हटाएंबहुत ही गहन चिन्तनीय...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
रचना सराहना के लिए बहुत बहुत आभार सुधा जी !
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रविंद्र जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सुशील जी !
हटाएंगहरे भावों का अवगूंठन मीना जी ।
जवाब देंहटाएंसच कर्मो का है फेरा सारा या खारे अश्रु बिंदु या स्वाति जल बन मोती ।
बहुत सुंदर रचना।
आपकी सराहनीय और उर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी ।
हटाएंभाव की तरह ही गहरी और शांत कमाल कर दिया मीना जी
जवाब देंहटाएंआप की प्रतिक्रिया से लेखन को नई गति मिलती है संजय जी ! उत्साहवर्धन के लिए अति आभार ।
जवाब देंहटाएंकोल्हू सा ही तो है ये जीवन, जो एक बार बँधा सो बँधा। अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी ।
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