"ऊषा स्वस्ति"
सिमट गया
नींद के आगोश में
भोर का तारा
सृष्टि के रंग
ऊषा की लाली संग
निखर गए
गीली सी धूप
हँसते दिनकर
चहके पंछी
नव आरम्भ
जागे जड़-चेतन
प्रातः वन्दन
XXXXX
सुन्दर हाइकु....
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद विकास जी ।
हटाएंमीना जी नाज़ुक ख़्यालों की ख़ूबसूरती से सजे हाइकु !!
जवाब देंहटाएंतहेदिल से शुक्रिया संजय जी !!!
हटाएंभोर से जुड़े ... रौशनी अक एहसास सर्द दिनों का प्यार ...
जवाब देंहटाएंसभी हाइकू लाजवाब ...
बहुत बहुत आभार नासवा जी !!!
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