पीर पराई
समझो तो समझे
तुम्हें खुद के
सुख-दुख का साथी
जीवन अनुरागी
मन ये मेरा
अभिव्यक्ति विहीन
भ्रम मोह के
मुझ से न सुलझें
उलझे से बंधन
कुछ ना कहो
नयन बोलते हैं
मन की वाणी
बिन बोले कहते
अनसुलझी बातें
मन दर्पण
घट घट की जाने
जानी अंजानी
सुख-दुख की बातें
कितनी फरियादें
XXXXX
कुछ न कहो
जवाब देंहटाएंनयन बोलते हैं
मन की वाणी
बिना बोले कहते
अनसुलझी बातें
बेहद सुन्दर कृति।
बहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंआभार दीपशिखा जी ।
हटाएंपीर पराई समझो तो समझे
जवाब देंहटाएं....वाह बहुत खूब लिखा आपने मीना जी कई बार देर से पहुँचता हूँ ब्लॉग पर पर जब भी आता हूँ मन खुश हो जाता है पढके !!
आपकी हृदय से आभारी हूँ संजय जी....., चाहे देर से आए , आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया सदैव लेखनी के लिए ऊर्जात्मक और उत्साहवर्धक होती है ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंतहेदिल से शुक्रिया लोकेश जी ।
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