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शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

“पूर्णमासी” ( चोका)

लुप्त चन्द्रमा
बादलों की ओट में
काली घटाएँ
टिप टिप बरसे
मन आंगन
सावन भादौ सा
भीगा ही भीगा
नेहामृत छलके
नेह घट से
अश्रु बूँद ढलके
पूनम यामा
नभ घन पूरित
चाँदनी को तरसे

XXXXX

12 टिप्‍पणियां:

  1. मीना दी, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी :-)

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  3. लुप्त चंद्रमा बूँद बूँद टपके ... या टिप टिप बरसे ... कुछ तो है
    गहरी अभिव्यक्ति

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  4. रचना का मर्म समझने के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी । ख्याल बूँद बूँद के साथ रिमझिम का भी आया था मगर बारिश की बूँदों की टिप टिप मन के अधिक करीब लगी । आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएँँ सदैव बेहतर लेखन को प्रेरित करती हैंं ।

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  5. बहुत ही सुंदर
    दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!

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    उत्तर
    1. आपको भी सपरिवार हार्दिक मंगलकामनाएं । आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहित करती हैं बेहतर लेखन हेतु ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"