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बुधवार, 28 नवंबर 2018

"उलझन"(तांका)

पीर पराई
समझो तो समझे
तुम्हें खुद के
सुख-दुख का साथी
जीवन अनुरागी

मन ये मेरा
अभिव्यक्ति विहीन
भ्रम मोह के
मुझ से न सुलझें
उलझे से बंधन

कुछ ना कहो
नयन बोलते हैं
मन की वाणी
बिन बोले कहते
अनसुलझी बातें
मन दर्पण
घट घट की जाने
जानी अंजानी
सुख-दुख की बातें
कितनी फरियादें

    XXXXX

शनिवार, 24 नवंबर 2018

"रूमानी हो जाएँ "

झील का किनारा और ऊँचे पहाड़
हरी-भरी वादी में वक्त बितायें ।
मन ने ठानी है आज
हम भी रूमानी हो जाएँ ।।


ओस में डूबी कुदरत
हम भी एस्किमोज बन जाएं।
डाले जेबों में हाथ
मुँह से भाप उड़ाएँ ।।


सोने सी बिखरी सैकत
रेतीले धोरों पर चलते जाएँ ।
मिलाएँ कदम से कदम
पीछे निशान छोड़ते जाएँ ।।


कभी नेह कभी तकरार
आपस में साथ निभाये ।
कभी मैं…, कभी तुम…,
एक दूजे के रंग में ढल जाएँ ।।


छोटी -छोटी बातों से अपना दिल बहलाएँ ।
चलो…, हम भी थोड़ा रूमानी हो जाएँ ।।
XXXXX

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

"फिक्र"

मेरी कुछ यादें और उम्र के अल्हड़ बरस ।
अब भी रचे-बसे होंगें उस छोटे से गाँव में ।।


जिसने ओढ़ रखी है बांस के झुरमुटों की चादर ।
और सिमटा हुआ है ब्रह्मपुत्र की बाहों में ।।


आमों की बौर से लदे सघन कुंजों से ।
पौ फटते ही कोयल की कुहूक गूँजा करती थी ।।


गर्मी की लूँ सी हवाएँ बांस के झुण्डों से ।
सीटी सी सरगोशी लिए बहा करती थी ।।


हरीतिमा से ढका एक छोटा सा घर ।
मोगरे , चमेली और गुलाबों सा महकता था ।।


अमरूद , आम और घने पेड़ों  के बीच ।
हर दम सोया सोया सा रहता था ।।


बारिशों के मौसम में उसकी फिक्र सी रहने लगी है ।
नाराजगी में नदियाँ गुस्से का इजहार करने लगी हैं ।।



                      X X X X X

बुधवार, 14 नवंबर 2018

'समझाइश' (माहिया)

कुछ गुजरे दिन दीखे
तुम से मिलने पर
विकसे कमल सरीखे


अपनी नेह कहानी
जानी पहचानी
लगती सरल सुहानी


ऐसे कुछ ना सोचो
कुछ पल रह कर चुप
सब सुन कर कुछ बोलो


रेशम के धागे हैं
जग के रिश्तों में
कितनी ही गांठें हैं
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शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

।। मुक्तक ।।

  ( 1 )


तेरे सारे ख़त मैंने कल जला दिए ।
यादों के निशां दिल से मिटा दिए ।।
आज आकर फिर यूं  सामने मेरे ।
गुजरे पल फिर क्यों दोहरा दिए ।।
     
                 ( 2 )

मैं तुझ पे यकीन करूं कैसे ।
तुम्हारे मन को मैं जानूं कैसे ।।
वक्त चाहिए खुलने में गिरहें ।
है सब कुछ ठीक मानूं कैसे ।।


( 3 )

हम तुम्हारा यकीन कर लेते हैं ।
ख्वाब बंद आँखों में भर लेते हैं ।।
मत देना उम्र से लम्बा इन्तजार ।
हम भी दोस्ती का दम भर लेते हैं ।।

                 ( 4 )

रूठे हैं जो उन्हें मना के दिखाओ ।
हुनर अपनी समझ का दिखाओ।।
आसान नहीं कोई भी मंजिल ।
अर्जमंदी से मंजिलें पा के दिखाओ ।।

            XXXXX


शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

“पूर्णमासी” ( चोका)

लुप्त चन्द्रमा
बादलों की ओट में
काली घटाएँ
टिप टिप बरसे
मन आंगन
सावन भादौ सा
भीगा ही भीगा
नेहामृत छलके
नेह घट से
अश्रु बूँद ढलके
पूनम यामा
नभ घन पूरित
चाँदनी को तरसे

XXXXX