पीर पराई
समझो तो समझे
तुम्हें खुद के
सुख-दुख का साथी
जीवन अनुरागी
मन ये मेरा
अभिव्यक्ति विहीन
भ्रम मोह के
मुझ से न सुलझें
उलझे से बंधन
कुछ ना कहो
नयन बोलते हैं
मन की वाणी
बिन बोले कहते
अनसुलझी बातें
मन दर्पण
घट घट की जाने
जानी अंजानी
सुख-दुख की बातें
कितनी फरियादें
XXXXX