(1) बचपन कब बीत गया
इस के जाने से
मन मेरा रीत गया
(2) मैं तो बस ये जानूं
तुम को ही अपना
सच्चा साथी मानूं
(3) लम्बी बातें कितनी
नापूं तो निकले
गहरी सागर जितनी
(4) मैं याद करूं क्या क्या
बीच हमारे थीं
सौ जन्मों की बाधा
(5) छोटी छोटी बातें
अब लगती हैं सब
जन्मों की सौगातें
XXXXX
वाह ... गज़ब के माहिए ...
जवाब देंहटाएंपंजाब के आँचल से निकली इस लोक गीत की शैली लाजवाब है ...
बहुत बधाई ...
उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी ।
हटाएंबहुत उम्दा.
जवाब देंहटाएंसच्चे इश्क में छोटीछोटी बाते या नोक झोंक सौगाते ही तो होती है.
हद पार इश्क
सारगर्भित उत्साहवर्धित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद रोहिताश्व जी ।
हटाएंएक एक माहिए ...को खुबसूरत शब्दों में पिरोया है मीना जी
जवाब देंहटाएंआपकी हौसला अफजाई करती प्रतिक्रिया सदैव
हटाएंउत्साहवर्धन करती हैं संजय जी ।
बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंआभार अनुराधा जी ।
हटाएंवाह बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद दीपशिखा जी ।
हटाएंप्रिय मीना जी -- बहुत सुंदर माहिया रचा अपने | गागर में सागर सरीखा !!!!!! शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया रेणु जी ।
हटाएंबहुत सुंदर माहिया लिखा आपने मीना जी ... बधाई
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिएबहुत बहुत आभार आपका 🙏🙏
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/10/2018 की बुलेटिन, निन्यानबे का फेर - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंइस मान के लिए तहेदिल से धन्यवाद शिवम् जी ।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लोकेश नदीश जी ।
हटाएंलाजवाब माहिया!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दविन्यास...
हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।
हटाएंसुन्दर....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकास जी ।
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