मन में अभी एक ख्याल आया ।
कौन हूँ , क्या हूँ , ये सवाल आया ।।
खोजा तो पाया स्वयं को बड़ा विशाल ।
नारी रूप में मेरा अस्तित्व बेमिसाल।।
बाबुल के आंगन तितली सी
मेघों की चपला बिजली सी ।
साजन के घर लगती ऐसी ।
देव धरा पर लक्ष्मी जैसी ।।
तन्वगिनी से नाम लिए हैं ।
सुख अपने सब वार दिये हैं ।।
नेह सुधा की गागर पकड़े ।
त्याग सभी बेनाम किये हैं ।।
मेघों की चपला बिजली सी ।
साजन के घर लगती ऐसी ।
देव धरा पर लक्ष्मी जैसी ।।
तन्वगिनी से नाम लिए हैं ।
सुख अपने सब वार दिये हैं ।।
नेह सुधा की गागर पकड़े ।
त्याग सभी बेनाम किये हैं ।।
सबके दिलों को जानती मैं ।
रिश्तों की कड़ियाँ बाधंती मैं ।।
तिनका-तिनका जोड़ कर ।
बिखरा घर संवारती मैं ।।
शिशु की प्रथम पाठशाला देती मैं संस्कार ।
मेरा हृदय धरा सम करूणा का मैं भण्डार ।।
इस धरा पर ईश्वर का दिया एक उपहार ।
खुद से मेरा खुद के द्वारा प्रथम साक्षात्कार ।।
XXXXX
सच कहा नारी का अस्तित्व बहुत विशाल होता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार लोकेश नदीश जी ।
जवाब देंहटाएंनारी के उदात्त चरित्र का बड़ा ही मनभावन चित्रांकन। आभार एवं बधाई इस अभिराम शब्द चित्र के!!!
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करते अनमोल वचनों के लिए हृदयतल से आभार विश्व मोहन जी ।
हटाएंAti uttam
जवाब देंहटाएंThank you Saransh 😊
हटाएंस्त्री-विमर्श को आगे बढ़ाती आपकी रचना विचारणीय है,मर्मस्पर्शी है. समग्रता में स्त्री जीवन के विभिन्न आयाम प्रस्तुत करती यह अभिव्यक्ति स्त्री के विराट रूप की एक झलक प्रस्तुत करती है.
जवाब देंहटाएंअफ़सोस की बात है कि संगीत,कला,साहित्य में स्त्री ने अनेक बंदिशों के बावजूद भी अपनी पहचान स्थापित की है फिर भी आज उसे नयी-नयी चुनौतियों का सामना करना पड रहा है.
सुन्दर रचना. बधाई एवं शुभकामनायें.
आपको की उत्साहवर्धन और मनोबलवर्धन करने वाली प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार रविन्द्र सिंह जी ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर स्वागत अमित आपका , आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसबके दिलों को जानती मैं ।
जवाब देंहटाएंरिश्तों की कड़ियाँ बाधंती मैं ।।
तिनका-तिनका जोड़ कर ।
बिखरा घर संवारती मैं ।।
बेहतरीन रचना मीना जी
बहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
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