अभिव्यक्ति शून्य , भावों से रिक्त ।
तृष्णा से पंकिल , ढूंढता असीमित ।।
असीम गहराइयों में , डूबता-तिरता ।
निजत्व की खोज में ,रहता सदा विचलित ।।
दुनियावी गोरखधंधों से , होता बहुत व्यथित ।
सूझे नही राह कोई , हो गया भ्रमित ।।
मृगतृष्णा में फंसे , तृषित हिरण सा ।
मरु लहरियों के जाल से , है बड़ा चकित ।।
तृष्णा में लिपटा , खुद को छलता ।
मेरा मन अपने आप में , होता सदा विस्मित ।।
XXXXX
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी ।
हटाएंतृष्णा में लिपटा , खुद को छलता ।
जवाब देंहटाएंमेरा मन अपने आप में , होता सदा अचंभित ।।
वाह बहुत सुंदर 👌
सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार अनुराधा जी ।
हटाएंबेहतरीन रचना 👌
जवाब देंहटाएंस्वागत अनीता जी "मंथन" पर एवं प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ।
हटाएंबेहतरीन.... लाजवाब....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
हटाएंलाजवाब।
जवाब देंहटाएंबस वाह निकलती हैं मुँह से।
बहुत बहुत बधाई।
स्वागत आपका "मंथन" पर ,आपके सराहना भरे शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाहः बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार
तहेदिल से आभार लोकेश नदीश जी ।
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/09/2018 की बुलेटिन, जन्मदिन पर "संकटमोचन" पाबला सर को ब्लॉग बुलेटिन का प्रणाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं"ब्लॉग बुलेटिन" मे मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार शिवम जी ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २४ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
"पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी रचना को स्थान देकर मान देने हेतु हार्दिक आभार श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रोहिताश्व जी ।
हटाएंभावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी :-)
हटाएंमृगतृष्णा में फंसे , तृषित हिरण सा ।
जवाब देंहटाएंमरु लहरियों के जाल से , है बड़ा चकित ।।
हमकदम के बहाने से तृष्णा पर बहुत ही लाजवाब सृजन प्रिय मीना जी |सस्नेह शुभकामनाएं स्वीकार हों |
रेणु जी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद ।
हटाएंबहुत सुंदर मीना जी ।
जवाब देंहटाएंइंसा क्यों निर्बल होता है,
तृष्णा में उलझा रहता है
निज अस्तित्व भी खोता है।
तृष्णा पर बहुत सटीक अभिव्यक्ति ।
सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार कुसुम जी ।
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