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रविवार, 26 अगस्त 2018

"आशाएँँ " (लघु कविताएँ)

  (1) 

बहते दरिया सा हो जीवन
करें सुकर्म रखें पुनीत मन

प्रगति पथ पर बढ़ते जाएँ
राग-द्वेष का कलुष मिटाएँं

निर्मल जल सा अपना हो मन
ज्योतिर्मय हो सब का जीवन


         ( 2 )

डाल से विलग पत्ती
ब्याह के बाद बेटी

अपनों से बिछड़
गैर सी आंगन में खड़ी

दिल में कसक
लबों पे मुस्कुराहट

दृगों में नमी और
गुम वजूद की चाहत

XXXXX

28 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. अति आभार 🙏 आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया पाकर अत्यंत प्रसन्नता हुई , सादर ...,

      हटाएं
  2. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 28/08/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुलदीप जी मेरी रचना को मान देने के लिए . "पांच लिंकों का आनंद' से जुड़ना मेरे लिए सदैव गर्व का विषय होता है.

      हटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. स्वागत आपका "मंथन" पर , आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद अभिलाषा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेटियों का जीवन ऐसा ही है ... पर संसार उनके बल पर ही है ...
    दोनो लाजवाब ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  6. दोनों कवितायें बहुत सुंदर , बेटी वाली कविता मन को गहरे छू गयी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका उत्साहवर्धन के लिए 🙏 🙏

      हटाएं
  7. बेहद खूबसूरत कृति है मीना जी।
    छोटी कविताओं ने बड़ी बात कितनी सादगी से कह दिया।

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्तर
    1. सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत धन्यवाद पुरूषोत्तम सिन्हा जी ।

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. हौसला अफजाई के लिए हृदयतल से धन्यवाद शुभा जी ।

      हटाएं
  10. क्षमा चाहता हूँ, ब्याह के बाद बेटी एक पौधा होती है जो दूसरी जगह जा फलती-फूलती है ! डाल से अलग हुई पत्ती नहीं जिसका अस्तित्व ही मिट जाता है !

    जवाब देंहटाएं
  11. यूं तो बेटियां दो कुलों का मान रखती हैं , देवी तुल्य होती हैं मगर सब को यह सुख नसीब नहीं होता बहुत बड़ा हिस्सा उन बेटियों का भी है जो ससुराल और मायके दोनों स्थानों पर उपेक्षिता होती हैं । रही बात अस्तित्व की तो वह तो नश्वर है ।

    जवाब देंहटाएं
  12. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कृति में सुन्दर अति सुन्दर.......बेहतरीन रचनाएं मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अति आभार संजय जी , सृजन की प्रशंसा उत्साहवर्धन कर और बेहतर लेखन के लिए प्रेरित करती है । पुनः बहुत बहुत आभार 🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"