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शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

"कुछ नये के फेर में"

कुछ नये के फेर में ,
अपना पुराना भूल गए ।
देख मन की खाली स्लेट ,
कुछ सोचते से रह गए ।।

ढलती सांझ का दर्शन ,
शिकवे-गिलों में डूब गया ।
दिन-रात की दहलीज पर मन ,
सोचों में उलझा रह गया ।।

दो और दो  के जोड़ में ,
भावों का निर्झर सूख गया ।
तेरा था साथ रह गया ,
मेरा सब पीछे छूट गया ।।

XXXXX

11 टिप्‍पणियां:

  1. दिन-रात की दहलीज पर मन ,
    सोचों में उलझा रह गया ।।
    जाने इस कविता में ऐसा क्या है जो भीतर तक लकीर की तरह खिंच गया है ... कुछ नये के फेर में मेरा सब पीछे छूट गया नए और पुराने के फेर को गहराई को नाप कर चलती हैं आप।

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    1. संजय जी मन प्रसन्नता से अभिभूत हुआ आपकी इतनी सराहनीय प्रतिक्रिया पा कर । हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार ।

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना मीना जी

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना मीना जी

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    1. आपका। स्वागत "मंथन" पर..., रचना सराहना के लिए हृदयतल से धन्यवाद सतीश सही जी ‌।

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  4. नए के फेर में कितना कुछ पीछे छूट जाता है जिसे संजो लेना चाहिए थे ... उस असीम रिक्तता को कौन भर सकता है ... सुंदर रचना

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    1. इतनी सुन्दर व्याख्यायित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपका ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"