हम तो मिलने के बहाने आ गए ।
दोस्ती को आजमाने आ गए ।।
मिलने का वादा था चांद रात का ।
वो वादा तुम से निभाने आ गए ।।
चांद के दीदार का बहाना बना।
दोस्ती का कर्ज चुकाने आ गए ।।
सीढ़ियों पर भाग कर आते कदम ।
बीते दिन फिर से दिखाने आ गए ।।
मैं कहूं कुछ या तुम मुझ से कहो ।
याद हम को दिन पुराने आ गए ।।
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वाह्ह..बहुत खूब...सुंदर शेर हैंं मीना जी..👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी ।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 7 जून 2018 को प्रकाशनार्थ 1056 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
इस सम्मान के लिए हार्दिक आभार रविन्द्र सिंह जी ।
हटाएंसंबंधो के सम्बन्ध में एक खूबसूरत शेर हर अनकहा कह दिया और वो भी बडी सादगी के साथ मीना जी
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद संजय जी रचना सराहना के लिए ।
हटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंपुराने दिनों की यादें कहाँ ख़ुद से निकलने देती हैं ...
लाजवाब शेर हैं ...
तहेदिल से धन्यवाद नासवा जी ।
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