चलिये आज हम भी कुछ काम कर लेते हैं ।
खाली वक्त भरने.का इन्तजाम कर लेते हैं ।।
बन जाइए आप भी रौनक- ए- महफिल ।
हुजूर में आपके सलाम कर लेते हैं ।।
चैन-ओ-सुकूं से यहाँ कोई जीये कैसे ।
नजरों से भी लोग कत्लेआम कर लेते हैं ।।
गैरों को भी कई बार अपना समझ लेते हैं हम ।
नादानियों में अपना किस्सा तमाम कर लेते हैं ।।
वक्त की नजाकत समझने में लगती है देर ।
सांसें भी आपकी वे अपने नाम कर लेते हैं ।।
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जवाब देंहटाएंगैरों को भी कई बार अपना समझ लेते हैं हम ।
नादानियों में अपना किस्सा तमाम कर लेते हैं ।।
बहुत सुंदर, मीना।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी ।
हटाएंगैरों को भी कई बार अपना समझ लेते हैं हम ।
जवाब देंहटाएंनादानियों में अपना किस्सा तमाम कर लेते हैं ।।
ये तो एक प्रवृति है अच्छे इंसान की .. वो हर किसी को अपना मान लेता है ... और ये भी सच है की आज के दौर में ऐसी नादानियाँ अपना ही नुक्सान करती हैं ...
लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के बधाई ...
बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/07/76.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"मित्र मंडली" से जुड़ना मेरे लिए हर्ष का विषय है राकेश जी तहेदिल से आभार आपका ।
हटाएंचलिये आज हम भी कुछ काम कर लेते हैं
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर हैं मनोभाव को बहुत खूबसूरत ढंग से शब्द दिए है आपने
आपकी प्रंशसात्मक प्रतिक्रिया लेखन के उत्साह द्विगुणित करती है संजय जी ।
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