फुर्सत के लम्हे रोज़ रोज़ मिला नहीं करते ।
सूखे फूल गुलाब के फिर खिला नहीं करते ।।
छूटा जो हाथ एक बार दुनिया की भीड़ में ।
ग़लती हो अपने आप से तो गिला नहीं करते ।।
आंधियों का दौर है , है गर्द ओढ़े आसमां ।
चातक को गागर नीर हम पिला नहीं सकते ।।
देने को साथ कारवां में लोग हैं बहुत ।
खोया है गर यकीं तो फिर दिला नहीं सकते ।।
सोचूं ऐ जिन्दगी तुम्हें मैं गले से लगा लूं ।
रस्मे वफ़ा-ए-इश्क से फिर हिला नहीं सकते ।।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 27 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंक़ो का आनंद में" मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार यशोदा जी । आप के लिंक से जुड़ना मेरे लिए सदैव प्रसन्नता का विषय होता है ।
जवाब देंहटाएंफुर्सत के लम्हे रोज़ रोज़ मिला नहीं करते ।
जवाब देंहटाएंसूखे फूल गुलाब के फिर खिला नहीं करते ।।
वास्तविकता जिसमें बेपनाह दर्द है, वेहतरीन नज्म लाजवाब है मीना जी !
आप की सराहना से युक्त उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देख कर खुशी की अनुभूति होती है । आपका तहेदिल से धन्यवाद संजय जी ।
हटाएंबहुत सुंदर नज़्म मीना जी।
जवाब देंहटाएंमन के सारे भाव शब्दों के साथ तैरने लगे..👌
बहुत बहुत आभार श्वेता जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना मीना जी !
जवाब देंहटाएंछूटा जो हाथ एक बार दुनिया की भीड़ में ।
ग़लती हो अपने आप से तो गिला नहीं करते ।
वाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बहुत बहुत आभार ध्रुव सिंह जी "लोकतंत्र" संवाद मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए ।
हटाएंउम्दा लेखन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब मतला और कमाल के शेर हैं सभी ...
आप गज़ल लिखते हैं मुझे इस रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से प्रसन्नता हुई । गज़ल के लिए मेरा यह पहला प्रयास है । तहेदिल से धन्यवाद आपका ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत। आभार कामिनी जी। आपने मेरी पहले ग़ज़लरूपी प्रयास को मंच पर स्थान दिया ।
हटाएंदेने को साथ कारवां में लोग हैं बहुत ।
जवाब देंहटाएंखोया है गर यकीं तो फिर दिला नहीं सकते ।।वाह! बेहतरीन सृजन सखी।
हार्दिक आभार सखी !
हटाएंछूटा जो हाथ एक बार दुनिया की भीड़ में ।
जवाब देंहटाएंग़लती हो अपने आप से तो गिला नहीं करते ।।
फिर भी लोग दूसरों पर ही गलती का आरोप लगा देते हैं ।
खूबसूरत रचना
मैं सोचती हूँ मानव स्वभाव में पूर्णता आ जाएगी जब वह दोषारोपण की बजाय आत्ममंथन करना सीख लेगा।आपकी स्नेहिल उपस्थिति सृजन में ऊर्जा भरती है । मैं आपके मनोबल संवर्द्धन से अभिभूत हूँ मैम! हार्दिक आभार🙏🌹🙏
हटाएंबहुत ही उम्दा ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ।
हटाएंवाह!गज़ब दी 👌
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंबेहद सुंदर कृति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार भारती जी।
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