( 1 )
समय चक्र
XXXXX
समय चक्र
कुछ पल ठहरे
तो मैं चुन लूं
स्मृतियों के वो अंश
छूटे है यहीं कहीं
( 2 )
वक्त के साथ
निश दिन चलते
थका है मन
प्रतिस्पर्धी होड़ से
रूक कर सुस्ता लूं
( 3 )
मेरे अपने
तेरा हाथ पकड़
चलना चाहूं
एक नई डगर
बन के सहचर
(4 )
गर खो जाए
दुनिया की भीड़ में
दीप यकीं का
प्रज्जवलित रखें
मन के आँगन में
XXXXX
विश्वास तो मन के आंगन में ही उपजा रहे तो बेहतर है।
जवाब देंहटाएंजरा मेरी सी सोच रख कर देखा मैंने
समय तो रुका हुआ है
भाग तो मैं रहा हूँ।
छोड़ रहा हूँ कुछ को पीछे
कुछ को आगे पकड़ रहा हूँ
भूल गया हूँ कि समय तो रुक गया है
भटक गया हूं तो मैं।
सुंदर रचना
हटाएंकविता के माध्यम से दी गई प्रतिक्रिया बहुत अनमोल है मेरे लिए . आपकी सुन्दर सी टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद.
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
इस सम्मान के लिए आभार श्वेता जी ।
हटाएंबहुत सुंदर भाव, नई विधा में आपकी यह पकड़ अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंहदयतल से धन्यवाद मीना जी।
हटाएंइस विधा में आपकी अच्छी पकड़ है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
सादर
सुन्दर सी सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपका ।
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूबसूरत भाव ..।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी ।
जवाब देंहटाएंमैं चुन लूं
जवाब देंहटाएंस्मृतियों के वो अंश
छूटे है यहीं कहीं
हर पंक्ति अपने आप मैं सम्पूर्णन रोचकता के साथ लिखा आपने !!
आप की प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है संजय जी । हार्दिक धन्यवाद आपका ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लोकेश जी ।
हटाएंमन के आँगन में दीप सदा जलता रहे तो रास्ता स्वयं मिल
जवाब देंहटाएंजाता है ... सभी ताका लाजवाब ... स्पष्ट बात को रखते हुए ...
आप की प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है नासवा जी ।
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