( 1 )
अच्छी लगी
तुम्हारी आवाज में
लरजती मुस्कुराहट ।
बहुत दिन बीते यह
दुनियादारी की भीड़ में
खो सी गयी थी ।।
( 2 )
जागती आँखों से देखे
ख़्वाब पूरा करने की जिद्द
अक्सर दिखायी देती है ।
तुम्हारी हथेलियों की
सख्ती और मेरे
माथे की लकीरों में ।।
सख्ती और मेरे
माथे की लकीरों में ।।
( 3 )
ऐसी भी कोई
बात नही कि मन का
तुमसे कोई मोह नही ।
बस तुम्हारी “मैं” को
संभालना जरा टेढ़ी
खीर जैसा लगता है ।।
XXXXX
अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंतुम्हारी आवाज में
लरजती मुस्कुराहट ।
क्या लफ्ज़ पकडे है आपने मीना जी शानदार....मन फ्रेश हो गया सभी क्षणिकाएं सुन्दर है !!
आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन का कार्य करती है संजय जी . आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०७ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आभार ध्रुव सिंह जी ."लोकतन्त्र संवाद" मंच से जुड़ना मेरे लिए हर्ष का विषय है .
जवाब देंहटाएंअद्भुत क्षनिकाएं
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है..लिखते रहिये.
मेरे ब्लॉग तक भी आयें कभी खैर
धन्यवाद रोहितास जी एवं तहेदिल से स्वागत आपका ब्लॉग पर . आपकी रचना "खैर" पढ़ी बेहद प्रभावी लगी.
जवाब देंहटाएंतीनों क्षणिकाएँ लाजवाब हैं ... मुखर हैं ...
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
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