फुर्सत के लम्हे रोज़ रोज़ मिला नहीं करते ।
सूखे फूल गुलाब के फिर खिला नहीं करते ।।
छूटा जो हाथ एक बार दुनिया की भीड़ में ।
ग़लती हो अपने आप से तो गिला नहीं करते ।।
आंधियों का दौर है , है गर्द ओढ़े आसमां ।
चातक को गागर नीर हम पिला नहीं सकते ।।
देने को साथ कारवां में लोग हैं बहुत ।
खोया है गर यकीं तो फिर दिला नहीं सकते ।।
सोचूं ऐ जिन्दगी तुम्हें मैं गले से लगा लूं ।
रस्मे वफ़ा-ए-इश्क से फिर हिला नहीं सकते ।।
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