अवसर मिला “तिब्बतियन मॉनेस्ट्री” जाने का । तिब्बतियन शैली में बने भित्तिचित्रों में भगवान बुद्ध के जीवन-चरित और उनकी भव्य प्रतिमा को देख मन अभिभूत हो उठा । स्कूल लाइब्रेरी में स्व.श्री मैथलीशरण गुप्त की ‘यशोधरा’ पढ़ने को मिली जिसको पढ़ते हुए ना जाने कितनी बार मन और आँखों के कोर गीले हुए । भगवान बुद्ध की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होते हुए यशोधरा की व्यथा का भान हो आया और उपालम्भ मन से फूट पड़ा ।
मैं तुम्हारी यशोधरा तो नही....,
मगर उसे कई बार जीया है
जब से मैनें ......,
मैथलीशरण गुप्त का
मैथलीशरण गुप्त का
“यशोधरा” काव्य पढ़ा है
करूणा के सागर तुम
सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने
अनगिनत अनुयायियों के
पथ प्रदर्शक तुम
अष्टांगिक मार्ग और बौद्धधर्म के
जन्मदाता जो ठहरे
तुम्हारे बुद्धत्व के प्रभामण्डल के
समक्ष नतमस्तक तो मैं भी हूँ
मगर नम दृगों से तुम्हारा
ज्योतिर्मय रूप निहारते
मन के किसी कोने में
एक प्रश्न बार बार उभरता है
एक प्रश्न बार बार उभरता है
हे करूणा के सागर !
तुम्हारी करूणा का अमृत
जब समस्त जड़-चेतन पर बरसा
तो गृह त्याग के वक्त
राहुल और यशोधरा के लिए
तुम्हारे मन से नेह का सागर
क्यों नही छलका ?
क्यों नही छलका ?
XXXXX
निमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमन्त्रण के लिए आभार ध्रुव सिंह जी .
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/04/65_16.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"मित्र मंडली" में रचना को मान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद राकेश जी .
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी -- बहुत ही सार्थक लेकिन सदियों से अनुत्तरित प्रश्न | शायद इस लिए कि बुद्ध जन्म जात बुद्ध थे तभी उन्हें सांसारिक बनाने की सब चेष्टाएँ असफल हो गयी थी | वे आसक्त रहकर भी विरक्त थे -- इसी लिए शायद वे एक झटके से बंधन तोड़ चले गये बिना किसी मोह्पस में बंधे | बहुत भावपूर्ण रचना | सस्नेह --
जवाब देंहटाएंआभार रेणु जी ! इतनी सुन्दर विश्लेणात्मक प्रतिक्रिया के
जवाब देंहटाएंलिए .स्नेह सहित.
तुम्हारे बुद्धत्व के प्रभामण्डल के
जवाब देंहटाएंसमक्ष नतमस्तक तो मैं भी हूँ
पर अभी भी महात्मा बुद्ध के जीवन दर्शन को वृहद् रूप से अध्ययन की आवश्यकता है
बौद्ध धर्म का जन्म स्थल है तो अपना देश ही पर मान्यता और लोकप्रिय हमारे पड़ोसी देशों में अधिक है . पता नही क्यों बुद्ध का गृहत्याग ओर पत्नि व पुत्र के प्रति उनकी अनदेखी मुझे कभी भी तर्कसंगत नही लगी शायद इसी लिए मन से "उपालम्भ" निकल गया .
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