(1)
अधपकी रोटी का कोर खाते उसकी आँखों में नमी
और जुबां पे छप्पन भोग का स्वाद घुला है ।
बेटी के हाथों सिकी पहली रोटी मां की थाली में है ।।
(2)
मीठे चश्मे सी निकलती है पहाड़ से नदी
और जीवन संवार देती है मैदानों का ।
दो कुलों को बसा दिया प्रकृति से बेटी जो ठहरी ।।
XXXXX