भौगोलिक परिवेश में
धरती की हलचल ।
अन्दरुनी परतों के
खिसकने का हाल
बयान करती है ।
अन्दर सब कुछ ठीक !!
मगर सब ठीक कहाँ होता है ?
धरा को तो ध्वंस झेलना ही पड़ता है ।
इन्सान की भड़ास भी
वसुन्धरा की इस
हलचल से कम नही ।
जब निकलती है तो
ना जाने कितने ही
तंज और व्यंग उगलती है ।
उगल कर ढेर सारा लावा
खुद हो जाती है शांत और
दूसरों पर मुसीबत बनती है ।
XXXXX
jo ndian upar se shant lgti hain,pr neechey tej prvah hota hai-ashok
जवाब देंहटाएंbhdas nikane ka mtlb khud shant ho jana yani apne tnav ko dur kr dena hota hai,voh andr hi andr bda nuksan krta hai
जवाब देंहटाएंमेरा मानना है कि स्वयं की सन्तुष्टि के लिए दूसरों पर रोष प्रकट करना गलत है इसलिए तुलनात्मक दृष्टिकोण में भूकम्प का उदाहरण लिया है कि भूगर्भिक शक्तियों के चलते नुकसान धरती पर रहते जीव भोगते हैं.
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन खुशवंत सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंनिमन्त्रण के लिए एवं मेरी रचना "ब्लॉग बुलेटिन" में सम्मिलित कर सम्मान देने के लिए धन्यवाद हर्षवर्धन जी.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुनील सिंह जी.
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
लोकतंत्र'' संवाद मंच पर मेरी रचना को सम्मिलित कर मान देने के लिए आभार ध्रुव सिंह जी.
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लोकेश जी.
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/02/55.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक कर मान देने के लिए बहुत बहुत आभार राकेश जी.
हटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ऋतु जी.
हटाएंबहुत ही सही लिखा आदरणीय मीना जी | भड़ास निकलने से अपना मन शांत लेकिन सुनने वालों को अनावश्यक मानसिक या और कई तरह की परेशानियाँ झेलनी पड़ती हैं | सादर -----
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी.
जवाब देंहटाएंसच बात है भड़ास निकालने से अपने को कष्ट होता है
जवाब देंहटाएंप्रकृति के साथ इसका सचेत करता मिश्रण
बहुत खूब
सादर
बहुत बहुत आभार ज्योति जी.
जवाब देंहटाएंकई बार ये भड़ास निकलनी भी ज़रूरी है नहि तो मन में कूड़ा इकट्ठा हो जाता है ... अच्छी रचना है ...
जवाब देंहटाएंरचना सराहना के लिए हार्दिक आभार नासवा जी.
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