(1)
कुदरत की आँखें नम और मनस्थिति कुछ गमगीन है
एक और दिवस बीता एक और युग अवसान हुआ ।
नश्वरता की प्रकृति प्रकृति को भी कहाँ भाती है ।।
(2)
व्यक्तित्व का अंश बन जाती हैं कुछ स्मृतियाँ
अहसासों को महसूसने में भी टीस ही देती हैं ।
बातों के जख्म आसानी से कहाँ भरा करते हैं ।।
XXXXX
कुछ स्मृतियाँ
जवाब देंहटाएंअहसासों को महसूसने में भी टीस ही देती हैं !
...धारदार त्रिवेणी भावों का अनूठा समन्वयन त्रिवेणी की हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हैं..... मीना जी
सदैव आपकी प्रतिक्रिया हौंसला अफजाई करने वाली होती है . लेखन सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएं"पाँच लिंकों का आनन्द" में मेरी रचना को सम्मिलित कर मान देने के लिए हृदयतल से आभार ध्रुव सिंह जी .
जवाब देंहटाएंवाह!!मीना जी ,सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर स्वागत आपका शुभा जी . रचना सराहना के लिए हृदय से आभार.
हटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंआभार नीतू जी .
हटाएंआदरणीय मीना जी -- आज आपकी तीन रचनायें पढ़ी |मन की भावुकता के कई रंग समेटे ये रचना अपने अपमे भावों का दस्तावेज़ है | बहुत ही भावपूर्ण रचना --- सादर सस्नेह शुभकामना |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी स्नेहिल व उत्साहवर्धित प्रतिक्रिया हेतु सस्नेह आभार .
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