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( 1 )
उगते सूरज से मांगा है उन्नति और विकास
चाँद से स्निग्धता और उज्जवलता ।
क्या बताऊँ तुम्हें…..,कि तुमसे कितना प्यार है ।।
( 2 )
लम्बी डगर और उसके दो छोर
बिना मिले अनवरत साथ साथ चलते हैं ।
जीने का हुनर पगडंडियाँ भी जानती हैं ।।
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बहुत सुन्दर त्रिवेणी....
जवाब देंहटाएंअत्यन्त आभार सुधा जी .
हटाएंवाह्ह्ह...बहुत सुंदर त्रिवेणी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार श्वेता जी .आप का ब्लॉग page खुल नही रहा .
हटाएंक्या बताऊँ तुम्हें…..,कि तुमसे कितना प्यार है ।।
जवाब देंहटाएंमीना जी सुंदर त्रिवेणी के माध्यम से सब कुछ बड़ी सहजता से कह दिया आपने.....कुछ स्मृतियां ताजी हो गईं
आपकी सराहना सदैव लेखन हेतु प्रेरणादायी होती है संजय जी .
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