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सोमवार, 23 अक्टूबर 2017

“महक”

जब सूरज की तपिश तेज होती है और सूखी धरती पर 
बारिश की पहली बार बूँदें  टकराती है तो मिट्टी‎ के वजूद
से उठती गंध मुझे बड़ी भली लगती है। आजकल जमाना
 फ्रिज में रखी वाटर बॉटल्स वाला है मगर मेरे बचपन में 
मिट्टी‎ की सुराहियों और मटकों वाला था। मुझे याद है मैं 
सदा नया मटका धोने की जिद्द करती और इसी बहाने 
उस भीनी महक को महसूस करती रहती । माँ की
 आवाज से ही मेरी तन्द्रा टूटती । बारिश शुरु होते ही 
उस खुश्बू का आकर्षण‎ स्कूल के कड़े अनुशासन में 
मुझे नटखट बना देता और अध्यापिका की 
अनुपस्थिति में खिड़की‎ या 
कक्षा‎ कक्ष‎ के दरवाजे‎ तक आने को मजबूर कर
 देता।  एक दिन यूं ही कुछ‎ पढ़ते‎ पढ़ते पंजाब‎ की प्रसिद्ध‎ 
लोक कथा‎ ‘सोनी-महिवाल’ का प्रसंग पढ़ने को
 मिल गया ,कहानी से अनजान तो नही थी मगर
 उत्सुकतावश पढ़ने बैठ गई । 
कहानी का सार कुछ इस तरह था -------
                          “18 वीं शताब्दी‎ में चिनाब नदी के 
किनारे एक कुम्भकार के घर सुन्दर‎ सी लड़की का 
जन्म हुआ जिसका नाम “सोहनी” था । 
पिता के बनाए‎ मिट्टी‎ के बर्तनों
पर वह सुन्दर‎  सुन्दर‎ आकृतियाँ उकेरती । 
पिता-पुत्री के बनाए‎ मिट्टी‎ की बर्तन दूर  दूर‎ तक 
लोकप्रिय‎ थे । उस समय चिनाब नदी से अरब देशों‎ 
 और उत्तर भारत के मध्य व्यापार
 हुआ‎ करता था। बुखारा (उजबेकिस्तान) के अमीर 
व्यापारी का बेटा  व्यापार के सिलसिले में चिनाब 
के रास्ते‎ उस गाँव से होकर आया और सोहनी को देख 
मन्त्रमुग्ध हो उसी गाँव में टिक गया । आजीविका 
यापन के लिए उसी गाँव‎ की भैंसों को चराने का काम
 करने से वह महिवाल के नाम से जाना जाने लगा । 
सामाजिक‎ वर्जनाओं के चलते सोहनी मिट्टी‎ के घड़े 
की सहायता से चिनाब पार कर महिवाल से छिप
 कर मिलने जाती । राज उजागर होने पर उसी की
 रिश्तेदार ने मिट्टी‎ के पक्के घड़े को कच्चे घड़े मे
 बदल दिया । चिनाब की धारा के आगे कच्ची मिट्टी‎ 
के घड़े की क्या बिसात ?  घड़ा गल
 गया और  पानी में डूबती सोहनी को बचाते हुए‎ 
महिवाल भी जलमग्न हो गया ।"

*****
      
 कभी  कभी‎ लगता है माटी की देह में  कहीं सोहनी 
 तो कहीं  किसी और अनजान तरुणी का प्यार‎ बसा है  ।
 ना जाने कितनी ही अनदेखी और अनजान कहानियों‎
 को अपने आप में समेटे है यह।  तभी‎ तो मिट्टी‎ पानी
 की पहली बूँद के सम्पर्क‎ में आते ही सौंधी सी गमक
 से महका देती है सारे संसार‎ को ।

                xxxxx 

16 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!!
    मिट्टी में सोहनी और मेहवाल के प्रेम की महक.....
    बहुत ही सुन्दर, सार्थक ।

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  2. सच कहा आपने.... मिट्टी में महक प्यार की हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. स्वागत आपका ब्लॉग पर और लेखन‎ कार्य‎ की सराहना के लिए‎ आभार .

    जवाब देंहटाएं
  4. बारिश की बूंदों के जमीन पर गिरने के बाद मिट्टी की सोंधी खुशबू किसे अच्छी नहीं लगती
    जमीन को स्पर्श करने से पहले बारिश की बूंदों में कोई खुशबू नहीं होती, लेकिन जैसे ही यह धूलकणों से मिलती है, हम एक सोंधी सी खुशबू महसूस करते हैं...बहुत बढ़िया आलेख पसंद आया !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया‎ सदैव उत्साहवर्धन ही करती है .लेख को पोस्ट करते समय कहीं थोड़ी झिझक भी थी कि बात कहने के लिए‎ अलग‎ सा लिखने का प्रयास किया है .

      हटाएं
  5. मीना जी,मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू में प्यार की खुशबू...वाव्व... बहुत ही सुंदर कल्पना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कल्पना‎ की सराहना हेतु बहुत बहुत‎ धन्यवाद ज्योति जी .

      हटाएं
  6. मीना जी बहुत सुंदर चर्चित कहानी को सुंदर शब्द देकर जीवंत कर दिया आपने।बहुत खूबसूरत हृदयस्पर्शी रचना।

    जवाब देंहटाएं
  7. सराहना की लिए‎ हृदयतल से आभार श्वेता जी .

    जवाब देंहटाएं
  8. मिटटी की महक हमेशा उन्मादी कर देती है अक्षत प्रेम को ... इस पावन प्रेम का एहसास ही महिवाल हो जाना है ...

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  9. आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया‎ के लिए‎ हृदयतल से धन्यवाद दिगम्बर जी .

    जवाब देंहटाएं
  10. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-3-22) को "सैकत तीर शिकारा बांधूं"'(चर्चा अंक-4374)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  11. विशेष प्रस्तुति में मेरी रचनाओं का चयन हर्ष और गर्व का विषय है मेरे लिए.., बहुत बहुत आभार कामिनी जी!

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  12. बारिश की पहली फूहार और मिट्टी की सौंधी खुशबू को आपने गहनता से सोहनी महिवाल या फिर ऐसी ही तरुण अपूर्ण प्रेम गाथाओं से ऐसा गूँथा है मन भावविह्वल हो गया, अद्भुत कल्पना शक्ति ।
    बेजोड़ सृजन।

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  13. लेखन सार्थक हुआ आपका सराहना भरी स्नेहिल उपस्थिति से…,आभारी हूँ कुसुम जी 🙏

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"