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मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017

“विभावरी” (हाइकु)

जिद्दी है मन
करता मनमानी
कैसी नादानी

स्वप्निल आँखें‎
ये जागे जग सोये
मौन यामिनी

राह निहारे
ओ भटकी निन्दिया
थके से नैना

सोया वो चन्दा
गुप चुप से तारे
सोती रजनी

भोर का तारा
दूर क्षितिज पर
ऊषा की लाली

निशा विहान
सैकत तट पर
जागा जीवन

xxxxx

22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह....सुंदर हायकु मीना जी।

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  2. वाह !
    बेहतरीन !
    सुंदर !
    नाज़ुक ख़्यालों की ख़ूबसूरती से सजे हाइकु ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना‎ सराहना के लिए‎ अत्यन्त आभार रविन्द्रसिंह जी.

      हटाएं
  3. भोर का तारा
    दूर क्षितिज पर
    ऊषा की लाली
    ....बेहद उम्दा एकदम सही बात है मीना जी:)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना‎ सराहना के लिए‎ तहेदिल से धन्यवाद संजय जी .

      हटाएं
  4. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 12-10-2017 को प्रकाशनार्थ 818 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "पाँच लिंकों का आनन्द‎" में मेरी रचना‎ को मान देने के लिए‎ सादर आभार रविन्द्रसिंह जी .

      हटाएं
  5. राह निहारे
    ओ भटकी निन्दिया
    थके से नैना।


    बहुत सुंदर हायकू। wahh

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बहुत‎ धन्यवाद अमित जी .

    जवाब देंहटाएं
  7. आशा उम्मीद और नेह का आभास लिए सुन्दर हाइकू हैं ...

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"