जिद्दी है मन
करता मनमानी
कैसी नादानी
स्वप्निल आँखें
ये जागे जग सोये
मौन यामिनी
राह निहारे
ओ भटकी निन्दिया
थके से नैना
सोया वो चन्दा
गुप चुप से तारे
सोती रजनी
भोर का तारा
दूर क्षितिज पर
ऊषा की लाली
निशा विहान
सैकत तट पर
जागा जीवन
xxxxx
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअत्यन्त आभार लोकेश जी .
हटाएंवाह्ह्ह....सुंदर हायकु मीना जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी .
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
सुंदर !
नाज़ुक ख़्यालों की ख़ूबसूरती से सजे हाइकु ।
रचना सराहना के लिए अत्यन्त आभार रविन्द्रसिंह जी.
हटाएंभोर का तारा
जवाब देंहटाएंदूर क्षितिज पर
ऊषा की लाली
....बेहद उम्दा एकदम सही बात है मीना जी:)
रचना सराहना के लिए तहेदिल से धन्यवाद संजय जी .
हटाएंनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 12-10-2017 को प्रकाशनार्थ 818 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
जवाब देंहटाएं"पाँच लिंकों का आनन्द" में मेरी रचना को मान देने के लिए सादर आभार रविन्द्रसिंह जी .
हटाएंबहुत सुंदर हायकू.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार राजीव जी .
जवाब देंहटाएंBahut sundar.
जवाब देंहटाएंThanks .
जवाब देंहटाएंराह निहारे
जवाब देंहटाएंओ भटकी निन्दिया
थके से नैना।
बहुत सुंदर हायकू। wahh
बहुत बहुत धन्यवाद अमित जी .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंआभार ध्रुव सिंह जी .
हटाएंलाजवाब हायकू....
जवाब देंहटाएंवाह!!
आभार सुधा जी .
जवाब देंहटाएंआशा उम्मीद और नेह का आभास लिए सुन्दर हाइकू हैं ...
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद दिगम्बर जी .
हटाएं