“आगे चले बहुरि रघुराया ।
ऋष्यमूक पर्वत नियराया।।
श्री राम की सुग्रीव मैत्री का साक्षी - ऋष्यमूक पर्वत, हनुमान जी जन्मस्थली- आंजनेय पर्वत और बाली पर्वत से घिरा मनोरम स्थल जिसे रामायण काल मे किष्किन्धापुरी के नाम से जानते हैं , तुंगभद्रा नदी के किनारे फैला है। इसी भू भाग में 1350 ई. से 1556 ई.तक संगमवंश का शासन रहा। हरिहर राय और बुक्का राय नामक दो भाईयों ने विजय नगर राज्य की स्थापना कर हम्पी को अपने राज्य की राजधानी बनाया । यूनेस्को द्वारा संरक्षित इन प्राचीन अवशेषों की स्थापत्य कला देखते ही बनती है । कहीं पर आध्यात्म मन को शान्ति देता है तो कहीं पुरातात्विक निर्माण रोमांचित करता है। मैं ना कोई इतिहासविद हूँ और ना ही कुशल फोटोग्राफर ,बस जो मन को जँचा कैमरे में कैद कर लिया।
मुझे सदा यही लगा कि प्रकृतिदत्त निर्माण हो या मानवकृत, खामोशी में हर एक की अभिव्यक्ति है, ये भी गीत हैं, विचार हैं, मौन में मुखर होने की कला में निपुण हैं। इस पोस्ट में यही अभिव्यक्ति कुछ तस्वीरों के माध्यम से आप से साझा करने का प्रयास किया है ।
मुझे सदा यही लगा कि प्रकृतिदत्त निर्माण हो या मानवकृत, खामोशी में हर एक की अभिव्यक्ति है, ये भी गीत हैं, विचार हैं, मौन में मुखर होने की कला में निपुण हैं। इस पोस्ट में यही अभिव्यक्ति कुछ तस्वीरों के माध्यम से आप से साझा करने का प्रयास किया है ।
बहुत बहुत खूबसूरत तस्वीरें है मीना जी।सुघड़ फोटोग्राफी है आपकी मुझे पसंद आयी बहुत।👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी 😊
जवाब देंहटाएंआज नया परिचय हो गया मीना जी खूबसूरत फोटोग्राफी भी कर लेती है आप मंदिर के गुम्बदों पर बढ़िया चित्रकारी...बेहद आकर्षित करती है !
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रियाओं और रचनाओं की सदैव प्रतीक्षा रहती है संजय जी . हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत आभार .
जवाब देंहटाएंसभी फोटो बहुत बढ़िया है।
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति जी .
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर फोटोग्राफी...
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी .
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