top hindi blogs

Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

“पीड़ा”

मन की पीड़ा
बह जाने दो  ।
बहते दरिया में वो
हल्की हो जाएगी ।
गीली लकड़ी‎ समान
होती है  मन की पीड़ा ।
जब उठती है तो
सुलगती सी लगती है  ।
और आँखों में धुएँ के साथ
सांसों में जलन सी भरती है ।
पता है ……. ?
ठहरे पानी पर
काई ही जमती है ।
थमने से वजूद  
खो सा जाता है  ।
चलते रहो …..,
यही‎ जिन्दगी है ।

xxxxx

15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह....मीना जी लाज़वाब रचना,सुंदर संदेश भरी पंक्तियाँ।बहुत अच्छी👌

    जवाब देंहटाएं
  2. सही कहा चलते रहो यही जिन्दगी है....
    लाजवाब रचना....

    जवाब देंहटाएं
  3. ठहरे पानी पर
    काई ही जमती है ।
    थमने से वजूद
    खो सा जाता है ।
    चलते रहो …..,
    यही‎ जिन्दगी है ।
    बहुत सुंदर...

    जवाब देंहटाएं
  4. सच कहा अहि ... मन की पीड़ा बह जाये तो अच्छा ... मन हल्का हो जाता है ... जीवन आसान हो जाता है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना‎ का मर्म समझने के लिए‎ शुक्रिया दिगम्बर जी .

      हटाएं
  5. मन की पीड़ा
    बह जाने दो ।
    बहते दरिया में वो
    हल्की हो जाएगी ।
    मन की पीड़ा का बह जाना बहुत जरूरी है मन की घुटन को बहुत शान्ति मिलती है ....और जीवन फिर अपनी रफ़्तार से चलने लगता है !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत‎ बहुत‎ धन्यवाद संजय जी .

    जवाब देंहटाएं
  7. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 10/04/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"