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( 1 )
प्रकृति में रूक्षता और कठोरता दिखती है
ओस कण तो मृदुल और तरल होते हैं ।
लगता है कभी अपनापा बड़ा गहरा रहा होगा ।।
( 2 )
ताल के सोये पानी को कंकड़ी मार
शरारती बच्चे ने गहरी नीन्द से जगा दिया ।
तुम से मिल के भी बस यूं ही हलचल हो जाती है।।
( 3 )
बहुत सारे फूल हवाओं के झकोरों संग
झुण्ड के झुण्ड शाखों को छोड़ कर चल दिए ।
शायद अस्तित्व की तलाश में ।।
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लाजवाब त्रिवेणी.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी .
हटाएंवाह्ह्ह....बहुत सुंदर लाज़वाब त्रिवेणी मीना जी।👌👌
जवाब देंहटाएंअर्थ भाव सब समेटे हुये सुंदर रचना आपकी।
लेखन कार्य की सराहना के लिए अत्यन्त आभार श्वेता जी .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... त्रिवेनियों के मास्ध्यम से कितनी गहरी बात कही जाती है ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दिगम्बर जी ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर त्रिवेणी
जवाब देंहटाएंज्योति जी, "मंथन" पर आपका हृदय से स्वागत है। आपकी सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमार्मिकता से लबरेज़ क्षणिकाओं की त्रिवेणी अलग-अलग धाराओं से बहकर भागीरथी-सी निर्मल धारा बनकर हमारे दिलों को पावन स्नान कराती है ,भावों से सराबोर करती है।
जवाब देंहटाएंबधाई मीना जी ऐसी त्रिवेणी से पाठकों को परिचित कराने के लिए।
दरअसल गुलजार साहब की त्रिवेणियाँ पढ़ी थी कभी तो मन किया कोशिश कर के देखूं इस डगर पर चलने की। रचनात्मकता शैली पर आप गुणीजनो की प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ।अत्यन्त आभार रविन्द्र सिंह जी ।
जवाब देंहटाएंटीस सी छोडती हुई गहरी बात उफ़ ... कैसे सोच लेती हैं इतना सब कुछ :)
जवाब देंहटाएंरचनात्मक शैली को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी ।
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