रेशमी धागों की माया बड़ी अपरम्पार है
तुम्हारे आने की चाह में
ये कभी कुम्हला जाते हैं
तो कभी उलझ जाते हैं
बंधते तो साल में एक ही बार हैं
मगर बंधन की मजबूत पकड़
बड़ी गहरी होती है
एक बार बंधने के बाद रिश्तों में
दूरी हो या नजदीकी
एक दूसरे की शुभेच्छा की आंकाक्षा
आकंठ आपूरित होती है.
XXXXX
....वाह मीना जी रिश्तों की परख करती सुन्दर एहसासों को संजोये रिश्तों के जितने आयाम आपने अपनी कविता में दिखाए हैं वो आपकी रिश्तों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है !
जवाब देंहटाएंसंजय जी ,मेरी भावनाओं को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
हटाएंदिनांक 08/08/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
"पांच लिंकों का आनन्द" पर निमन्त्रण के लिए हृदयतल से आभार कुलदीप जी .
हटाएंबहुत सुन्दर ! रचना आभार ''एकलव्य"
जवाब देंहटाएंध्रुव सिंह जी रचना सराहना हेतु आभार .
हटाएंबहुत सुंदर रचना मीना जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंसुधा जी , बहुत बहुत आभार .
जवाब देंहटाएंक्योंकि ये बह्धन है रक्षा का ... सदा सदा के लिए ... तभी पूरे साल चलता है ... भाव पूर्ण ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिगम्बर जी .
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी मेरी रचना को राखी पर्व विशेषांक में सम्मिलित करने हेतु ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार सखी ।
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