जब भी सूरज चन्द दिनों की खतिर
बादलों की रजाई ओढ़ जब
एकान्तवास में चला जाता है तो
प्रकृति गमगीन सी हो जाती है
तब एक हूक सी उठती है सीने मे
और रगों में लहू के साथ
तुम्हारे साथ जीये खट्टे-मीठे
अनुभूत पलों की याद
बादलों में बिजली की सी
कौंध बन दिल मे उतर जाया करती है
xxxxx
गहन पंक्तियाँ, हृदय की टीस को प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा व्यक्त करती आपकी रचना मीना जी आपकी सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी .
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद लोकेश जी
हटाएंप्रकाश की कमी अक्सर मन में नम भाव उदित कर देती है ... ऐसे में खट्टे मीठे पल यादें बन के उतर आते हैं ... बहुत भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंरचना सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दिगम्बर जी .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द संयोजन मीना जी सीधे हृदय की टीस व्यक्त करती रचना!
जवाब देंहटाएंरचना सराहना के तहेदिल से शुक्रिया संजय जी .
जवाब देंहटाएं