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शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

“त्रिवेणी"

   (1)


मखमली आवरण के स्पर्श‎ का अहसास
सदा मुलायमियत भरा नही होता ।


कभी कभी‎ उसमें  भी फांस की सी चुभन होती है ।।


                  ( 2)


रोज रोज यूं जाया ना करो
खालीपन अच्छा नही लगता ।
सांसो की जगह घबराहट दौड़ने लगती है ।।


                  (3)

अब की बार सावन झूम के बरसा था
सोचा सारा मैल धुल जाएगा ।

मगर काई तो वैसे ही जड़ पकड़े बैठी है ।।

XXXXX

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अर्थपूर्ण सुंदर त्रिवेणी मीना जी।👌👌

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  2. आप अल्फाज़ के जरिये कम शब्दों में जो तस्वीरे गढ़ रही हैं... लाजवाब हैं!

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  3. आपकी उत्साहवर्धित करती सराहना मेरे लिए‎ अनमोल है संजय जी . बहुत‎ बहुत‎ धन्यवाद .

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  4. सत्य का अनावरण करती आपकी रचना ,लिखते रहिए शुभकामनायें आभार ,"एकलव्य"

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  5. आपकी उत्साह‎ वर्धन करती प्रतिक्रिया‎ के लिए‎ बहुत बहुत‎ धन्यवाद ध्रुव जी .

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  6. बहुत ही अर्थपूर्ण ... त्रिवेणी लिखना एक ऐसी कला है जो तीसरी पंक्ति के माध्यम से पहली दो पंक्तियों में जान डाल देती है ... गुलज़ार साहब को इस विधा का सृजक कहा जाता है ... उनकी त्रिवेनियों को भी पढ़ें ... अच्छा लगेगा आपको ...

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  7. बहुत बहुत‎ धन्यवाद दिगम्बर जी हौसलाअफजाई हेतु. इस से पहले भी दो त्रिवेणियाँ पोस्ट की थी मैने , गुलजार साहब‎ को मैं प्रेरणा मानती हूँ‎ इसका जिक्र पिछली पोस्ट में किया था . उनके लेखन की मिसाल कहाँ ..., बेमिसाल हैं‎ गुलजार साहब .

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  8. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब त्रिवेणी.....

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  9. तहेदिल से शुक्रिया सुधा जी .

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"