कोशिश की है कुछ नया करने की । कभी पढ़ी थी गुलजार साहब की लिखी त्रिवेणियाँ ….,लगा बात कहने का हुनर शायद ही जुट पाए लेकिन मन तो मन ठहरा उसने चाहा प्रयास करना चाहिए ।
(1)
सारी दोपहर यूं ही खर्च कर दी
कुछ लिखकर काटते हुए ।
सोचों में डूबा मन बिलकुल खाली था ।
(2)
गाँव दिन भर चादर तान के सोया था
सांझ ढले घरों में उठते धुएँ से सुगबुगाहट हुई है ।
भोर होते ही वह फिर सो जाएगा।
××××××
बहुत सुंदर त्रिवेणी लिखी आपने मीना जी। बहुत सुंदर शब्द संरचना एवं भाव।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से बहुत बहुत आभार श्वेता जी .
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 17 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहृदयतल से बहुत बहुत आभार यशोदा जी .
हटाएंबहुत उम्दा ! मीना जी आख़िर हृदय की बात जुबां तक आ ही गई बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ आभार ,"एकलव्य"
जवाब देंहटाएंरचना सराहना के लिए अत्यन्त आभार ध्रुव सिंह जी .
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद लोकेश जी .
हटाएंवाह ! मनभावन त्रिवेणियाँ
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद अनीता जी .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर... सार्थक...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी .
जवाब देंहटाएंसारी दोपहर यूं ही खर्च कर दी
जवाब देंहटाएंकुछ लिखकर काटते हुए ।
..... लफ्जों पर शानदार पकड़ मीना जी मन फ्रेश हो गया :)
लेखन कार्य की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद संजय जी . आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है .
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