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बुधवार, 16 अगस्त 2017

“त्रिवेणी"

कोशिश की है कुछ नया करने की ।  कभी पढ़ी थी गुलजार साहब की लिखी‎  त्रिवेणियाँ ….,लगा बात कहने का हुनर शायद ही जुट पाए  लेकिन मन तो मन ठहरा उसने  चाहा प्रयास करना  चाहिए । 

                (1)

सारी दोपहर यूं ही खर्च कर दी‎
कुछ लिखकर काटते हुए ।

सोचों में डूबा मन बिलकुल  खाली था ।
 
                 (2)

गाँव दिन भर  चादर तान के सोया था
सांझ ढले घरों में उठते धुएँ से सुगबुगाहट हुई है ।

भोर होते ही  वह फिर सो जाएगा।

                ××××××

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर त्रिवेणी लिखी आपने मीना जी। बहुत सुंदर शब्द संरचना एवं भाव।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 17 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत उम्दा ! मीना जी आख़िर हृदय की बात जुबां तक आ ही गई बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ आभार ,"एकलव्य"

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    1. रचना सराहना के लिए अत्यन्त‎ आभार ध्रुव सिंह जी .

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  4. वाह ! मनभावन त्रिवेणियाँ

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  5. उत्साह‎वर्धन करती प्रतिक्रिया‎ के लिए‎ धन्यवाद अनीता जी .

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  6. सारी दोपहर यूं ही खर्च कर दी‎
    कुछ लिखकर काटते हुए ।
    ..... लफ्जों पर शानदार पकड़ मीना जी मन फ्रेश हो गया :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लेखन कार्य‎ की सराहना के लिए‎ हार्दिक धन्यवाद संजय जी . आपकी प्रतिक्रिया‎ मेरे लिए अमूल्य है .

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"