फिजाओं में शोर बहुत है
मौन की चादर अपने वजूद से
लपेट मन किसी कोने में
गहरी नीन्द में सो रहा है
गहरी नीन्द में सो रहा है
कस कर शरीर की खूटियों से
बाँधा है ऐसे कि किसी हवा के झौके से
नींद में कहीं खलल ना पड़ जाए
खलल पड़ेगा भी कैसे…?
दिमाग ने वरदान जो दे रखा है
कुम्भकर्ण की तरह सोने का .
XXXXX
पूरी तरह सहमत हूं, शायद आज की यही जीवन शैली है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (२१-0६-२०२१) को 'कुछ नई बाते नये जमाने की सिखाना भी सीख'(चर्चा अंक- ४१०२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
कृपया रविवार को सोमवार पढ़े।
जवाब देंहटाएंसादर
चर्चामंच पर मेरे सृजन को सम्मानित करने के लिए हृदयतल से असीम आभार अनीता जी!
हटाएंदिमाग ने वरदान जो दे रखा है
जवाब देंहटाएंकुम्भकर्ण की तरह सोने का
मन को ही नहीं यदि तन को भी ये वरदान मिल जाए तो बुढ़ापा सुखमय गुजर जाएगा।
मौन रहना आ गया तो बहुत कुछ सुलभ भी हो जायेगा। कम शब्दों में बहुत कुछ कहना ये आपकी बहुत बड़ी ख़ासियत है मीना जी,बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति,सादर नमन
सारगर्भित स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार कामिनी जी 🙏 सादर वन्दे!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन सखी।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी!
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर!
हटाएंबेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शरद जी 🙏
हटाएंगहन भाव!मीना जी, गागर में सागर भर दिया आपने सच! ऐसा ही हैं आंखों के होते सूरदास होना।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन।
लेखन सार्थक हुआ कुसुम जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पा कर । सस्नेह आभार ।
हटाएंलाजवाब रचना मैम
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रीति जी!
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