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शनिवार, 5 अगस्त 2017

“मौन”

फिजाओं में शोर बहुत है
मौन की चादर अपने वजूद से
लपेट मन किसी  कोने में
गहरी नीन्द में सो रहा है 
कस कर शरीर की खूटियों से
बाँधा है ऐसे कि किसी हवा के झौके से
नींद में कहीं खलल ना पड़ जाए
खलल पड़ेगा भी कैसे…?
दिमाग ने वरदान जो दे रखा है
कुम्भकर्ण की तरह सोने का .

XXXXX

17 टिप्‍पणियां:

  1. पूरी तरह सहमत हूं, शायद आज की यही जीवन शैली है।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (२१-0६-२०२१) को 'कुछ नई बाते नये जमाने की सिखाना भी सीख'(चर्चा अंक- ४१०२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. कृपया रविवार को सोमवार पढ़े।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चामंच पर मेरे सृजन को सम्मानित करने के लिए हृदयतल से असीम आभार अनीता जी!

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  5. दिमाग ने वरदान जो दे रखा है
    कुम्भकर्ण की तरह सोने का

    मन को ही नहीं यदि तन को भी ये वरदान मिल जाए तो बुढ़ापा सुखमय गुजर जाएगा।
    मौन रहना आ गया तो बहुत कुछ सुलभ भी हो जायेगा। कम शब्दों में बहुत कुछ कहना ये आपकी बहुत बड़ी ख़ासियत है मीना जी,बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति,सादर नमन

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    उत्तर
    1. सारगर्भित स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार कामिनी जी 🙏 सादर वन्दे!

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  6. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी!

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  7. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शरद जी 🙏

      हटाएं
  8. गहन भाव!मीना जी, गागर में सागर भर दिया आपने सच! ऐसा ही हैं आंखों के होते सूरदास होना।
    अप्रतिम सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लेखन सार्थक हुआ कुसुम जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पा कर । सस्नेह आभार ।

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रीति जी!

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"