जब भी सूरज चन्द दिनों की खतिर
बादलों की रजाई ओढ़ जब
एकान्तवास में चला जाता है तो
प्रकृति गमगीन सी हो जाती है
तब एक हूक सी उठती है सीने मे
और रगों में लहू के साथ
तुम्हारे साथ जीये खट्टे-मीठे
अनुभूत पलों की याद
बादलों में बिजली की सी
कौंध बन दिल मे उतर जाया करती है
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