पुरातन का मोह बड़ा गहरा है मेरे लिए । पुराने दिनों की यादें, पुरानी डायरी , पुराने साथी ….., कहीं गहराई से जुड़े हैं मुझ से । पुरानी डायरी भर चुकी बहुत दिनों पहले , नई आ गई है हाथ में मगर मोह है कि छूटता ही नही ; लिखने के लिए उसी में कोई खाली कोना ढूंढती हूँ। नई डायरी से परिचय धीरे- धीरे बढेगा अभी तो वह अजनबी सी लगती है । एक छोटा सा “कोना” पुरानी पहचान के नाम ---
“आड़ी-टेढ़ी पंक्तियों और
मन के उठते गिरते
ज्वार-भाटे के बीच से
शब्दों के समन्दर से झांकते
एक कोरे कागज ने पूछा--
“अनमनापन क्यों है तुम में?”
आओ ………, मुझ से
थोड़ा सा अपनापन उधार ले लो.”XXXXX
Nice
जवाब देंहटाएंThanks Lokesh ji .
हटाएंयादें और उम्मीद इंसान के हौसले के लिए जरुरी हैं यादें भी जिंदगी का एक हिस्सा ही होती हैं जो जिंदगी रहने तक बनी रहती हैं और खासकर अपनों की. बहुत सुंदर...!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार संजय जी .
हटाएंआदरणीय मीना भारद्धाज जी
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका अपने समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर दस्तक दी आपके द्वारा दी गई एक एक प्रतिक्रिया ने मुझे अच्छा लिखने के लिए प्रेरित किया है एक बार पुन:आपका हृदय से धन्यवाद !
मुझे जब भी समय मिला मैंने आपके ब्लॉग पर लगभग बहुत सारी कविताएँ पढ़ी अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर आपके द्वारा लिखी रचना मित्रता, नेह के धागे, एक अकेला, पोटली, घर, परछाई और गुजारिश और खासकर अधूरी कविता बेहद पसंद आई इन रचनाओं में बढ़िया भावों के साथ कटु सत्य भी लिखा है जिनके एक एक शब्द भीतर और भीतर उतरते है..कमाल की लेखनी...मीना जी आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर अच्छा लगा सूंदर लेखनी ज़ारी रहे शुभकामनाएं !
आभार
संजय भास्कर
संजय जी,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने और रचनाएँ पढ़कर उत्साहवर्धन करने वाली प्रतिक्रियाओं के लिए आपने अपना अमूल्य समय दिया इसके लिए हृदयतल से आभार आपका.आपके सुझावों व प्रतिक्रियाओं की मुझे सदैव प्रतिक्षा रहेगी.आपकी लेखन शैली सरल,हृदयग्राही होने के साथ साथ अत्यन्त प्रभावशाली है .आपके ब्लॉग से जुड़कर मुझे हार्दिक खुशी हुई .मुझे अभी बहुत कुछ पढ़ना शेष है. शुभकामनाओं सहित.
मीना भारद्वाज.