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गुरुवार, 13 जुलाई 2017

"नेह के धागे"

चाँदनी में भीगे चाँद ने
खुले आसमान से
शीतल बयार के संग
कानों में सरगोशी की
आँखें खुली तो देखा
भोर का तारा
छिटपुट तारों के संग
आसमान से झांक रहा था
कुछ नेह के धागे थे
जो खुली पलकों की चिलमन पे
यादों की झालर बन अटके थे
चाँद की ओट में चाँद के साथ
कितनी ही बातें थी
कुछ आपबीती कुछ जगबीती
भोर की लालिमा के साथ ही
ख्वाबों की तन्द्रा बिखर गई
 कही अनकही सब बातें 
यादों की गठरी में सिमट गई



XXXXX

6 टिप्‍पणियां:

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"