चाँदनी में भीगे चाँद ने
खुले आसमान से
शीतल बयार के संग
कानों में सरगोशी की
आँखें खुली तो देखा
भोर का तारा
छिटपुट तारों के संग
आसमान से झांक रहा था
कुछ नेह के धागे थे
जो खुली पलकों की चिलमन पे
यादों की झालर बन अटके थे
चाँद की ओट में चाँद के साथ
कितनी ही बातें थी
कुछ आपबीती कुछ जगबीती
भोर की लालिमा के साथ ही
ख्वाबों की तन्द्रा बिखर गई
कही अनकही सब बातें
यादों की गठरी में सिमट गई
XXXXX
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंतहेदिल से शुक्रिया लोकेश जी .
जवाब देंहटाएंमन के भावों को रचना में आपने बहुत खूबसूरती से बाँधा है!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार संजय जी .
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना है कैसे लिख लेते हो इतनी सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंकविता सराहना के लिए तहेदिल से शुक्रिया आप का .
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