कोहरे के बादल, कड़ाके की ठण्ड हो तो
सूरज की नरम धूप, अच्छी लगती है।
भारी-भरकम भीड़, अनर्गल शोर हो तो
खामोशी की चादर, अच्छी लगती है।।
लीक पर दौड़, बेमतलब की होड़ हो तो
कुछ हट कर करने की सोच, अच्छी लगती है।
भावों का गुब्बार, अभिव्यक्ति का अभाव हो तो
नयनों की मूक भाषा, अच्छी लगती है।।
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सहज और सादगी से कही बात मन तक पहुँची !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .
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